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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ७, २७६
अतरोवणिधाए जहण्णए अणुभागबंधज्झवसाणट्ठाणे थोवा जीवा ।। २७६ ॥ अनन्तरोपनिधासे जघन्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानमें जीव सबसे स्तोक हैं ॥ २७६ ॥ विदिए अणुभागबंध ज्झवसाणट्ठाणे जीवा विसेसाहिया ॥ २७७ ॥ जव द्वितीय अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानमें उनसे विशेष अधिक हैं ॥ २७७ ॥ तदिए अणुभागबंधझवसाणट्ठाणे जीवा विसेसाहिया ।। २७८ ॥
जीव तृतीय अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान में उनसे विशेष अधिक हैं ॥ २७८ ॥ एवं विसेसाहिया विसेसाहिया जाव जवमज्झं ॥ २७९ ॥
इस प्रकार वे यत्रमध्य तक विशेष अधिक विशेष अधिक हैं ॥ २७९ ॥
तेणं परं विसेसहीणा ॥ २८० ॥
इसके आगे वे विशेष हीन हैं ॥ २८० ॥
एवं विसेसहीणा विसेसहीणा जाव उक्कस्सअणुभागबंधज्झवसाणट्टाणे त्ति ॥
इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान तक उक्त जीव विशेषहीन हैं ॥ २८९ ॥ परंपरोवणिधाए अणुभागबंधज्झवसाणडाणजीवेहिंतो तत्तो असंखेज्जलोगं गंतूण दुगुणवदिदा ।। २८२ ॥
परम्परोपनिधासे जघन्य अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानके जो जीव हैं उनसे असंख्यात लोक मात्र जाकर वे दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ २८२ ॥
एवं दुगुणवड्ढिदा जाव जवमज्झं ॥ २८३ ॥
इस प्रकार यवमध्य तक वे दूनी दूनी वृद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ २८३ ॥
तेण परमसंखेज्जलोगं गंतूण दुगुणहीणा ॥ २८४ ॥
उससे आगे असंख्यात लोक जाकर वे दूनी हानिको प्राप्त हुए है ॥ २८४ ॥ एवं दुगुणहीणा जाव उक्कस्सिय अणुभागबंधज्झवसाणट्ठाणे ति ।। २८५ ॥ इस प्रकारसे वे उत्कृष्ट अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानके प्राप्त होने तक दूनी हानिको प्राप्त हुए हैं ।। २८५ ॥
एगजीवअणुभागबंधज्झवसाणदुगुणवड्ढि हाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जा लोगा ।। २८६ ॥ एक जीवके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थानों सम्बन्धी दुगुणवृद्धि - हानिस्थानान्तर असंख्यात लोक प्रमाण हैं ॥ २८६ ॥
गाणाजीव अणुभागबंध ज्झवसाण दुगुणवड्ढि - [ हाणि ] द्वाणंतराणि आवलियाए असंखेज्जदिभागो || २८७ ॥
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