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४, २, ८, १५ ]
dr महाहियारे वेयणपञ्च विहाणं
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किया गया है । इनके हीन वा अधिक रखनेसे ज्ञानावरणीयका बन्ध होता है । माय शब्दसे यहां मेय को ग्रहण करना चाहिये । कारण यह कि प्राकृतमें ' ए ए छच्च समाणा' इत्यादि सूत्रके द्वारा एकारके स्थान में आकार आदेश हो जाता है । मेयसे अभिप्राय मापने व तोलनेके योग्य जौ और गेहूं आदि पदार्थोंका है । ये चूंकि मापने व तोलनेवालेके असद् व्यवहारके कारण होते हैं, अतः इनको भी ज्ञानावरण कर्मके बन्धका निमित्त माना गया है । मोष शब्द से यहां चोरीको ग्रहण किया है सांख्य, एवं मिमांसक आदि अन्य दर्शनोंकी रुचिसे सम्बद्ध ज्ञानका नाम मिथ्याज्ञान है ! मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका नाम मिथ्यादर्शन है । मन, वचन और काय इन योगोंकी प्रवृत्तिका नाम प्रयोग है । इन सब कारणोंसे ज्ञानावरणीयकी वेदना होती है । तत्त्वार्थ सूत्रमें ( ८- १ ) मिथ्याल, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग इनको सामान्य रूप से बन्धका कारण कहा गया है 1 उससे यहां कुछ विरोध नहीं समझना चाहिये । कारण यह कि यहां क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, दोष, मोह, प्रेम, निदान, अभ्याख्यान, कलह, पैशून्य, रति, अरति, उपधि, निकृति, मान, मेय और मोष; ये सब कषायके अन्तर्गत हैं । मिथ्याज्ञान और मिथ्यादर्शनको मिथ्यात्वके अन्तर्गत तथा प्रयोग प्रत्ययको योग के अन्तर्गत समझना चाहिये ।
एवं सत्तणं कम्माणं ॥ ११ ॥
इसी प्रकार शेष सात कर्मोंकी वेदनाके प्रत्ययोंकी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥ ११ ॥ उज्जुसुदस्स णाणावरणीयवेयणा जोगपच्चए पयडि - पदेसगं ।। १२ ।।
ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी वेदना योगप्रत्ययसे प्रकृति व प्रदेशाप्र (प्रदेश समूह ) रूप होती है ॥ १२ ॥
कसा यपच्चए द्विदि - अणुभागवेयणा ।। १३ ।।
उक्त ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा कषाय प्रत्ययके द्वारा ज्ञानावरणकी स्थितिवेदना और अनुभाग वेदना होती है ॥ १३ ॥
एवं सत्तणं कम्माणं ॥ १४ ॥
जिस प्रकार ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयके प्रत्ययोंकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार उक्त नयकी अपेक्षा शेष सात कर्मोंके प्रत्ययोंकी भी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥ १४ ॥ सद्दणस्स अवत्तव्यं ॥ १५ ॥
शब्दयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयवेदना अवक्तव्य है ॥ १५ ॥
शब्दनयमें समास आदिकी सम्भावना न होनेसे योग- प्रत्यय के द्वारा ज्ञानावरणीय की प्रकृति व प्रदेशरूप वेदना तथा कषाय- प्रत्ययसे उसकी स्थिति व अनुभाग रूप वेदना होती है, इस प्रकार उक्त नयकी अपेक्षासे कहना शक्य नहीं है । अतएव शब्दनयकी अपेक्षा उसे यहां अवक्तव्य कहा गया है ।
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