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४, २, १३, ४७ ]
वेयणमहाहियारे वेयणसण्णियासविहाणाणियोगद्दार
उक्कस्सादो अणुक्कस्सा पंचट्ठाणपदिदा ॥ ३५ ॥ वह अनुत्कृष्ट उत्कृष्टकी अपेक्षा पांच स्थानोंमें पतित है ॥ ३५ ॥ तस्स खेत्तदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ? ॥ ३६ ॥ उसके क्षेत्रकी अपेक्षा उक्त वेदना क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ॥ ३६॥ उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा ॥३७॥ उक्कस्सादो अणुक्कस्सा चउट्ठाणपदिदा ॥
वह उसके उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी होती है ॥ ३७॥ वह अनुत्कृष्ट उत्कृष्टकी अपेक्षा चार स्थानों में पतित है ॥ ३८ ॥
तस्स कालदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा? ॥३९।। उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा ॥
उसके कालकी अपेक्षा उक्त वेदना क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ॥ ३९ ॥ वह उसके उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी होती है ॥ ४० ॥
उक्कस्सादो अणुक्कस्सा तिट्ठाणपदिदा-असंखेज्जभागहीणा वा संखेज्जभागहीणा वा संखेज्जगुणहीणा वा ॥४१॥
वह अनुत्कृष्ट उत्कृष्टकी अपेक्षा असंख्यातभागहीन, संख्यातभागहीन और संख्यातगुणहीन इन तीन स्थानोंमें पतित है ॥ ४१ ॥
एवं दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं ॥ ४२ ॥
जिस प्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावमें प्रत्येककी विवक्षासे ज्ञानावरण कर्मकी उत्कृष्टअनुत्कृष्ट वेदनाकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्मोकी भी प्रकृत प्ररूपणा जानना चाहिये ॥ ४२ ॥
जस्स वेयणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सा तस्स खेत्तदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ? ॥
जिस जीवके वेदनीय कर्मकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ॥ ४३ ।।
णियमा अणुक्कस्सा असंखेज्जगुणहीणा ॥ ४४ ॥ वह उसके नियमसे अनुत्कृष्ट और असंख्यातगुणी हीन होती है ॥ ४४ ॥
तस्स कालदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ? ॥ ४५ ॥ उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा ॥४६॥ उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समऊणा ॥ ४७॥
उसके कालकी अपेक्षा उक्त वेदना क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट होती है ? ॥ ४५ ॥ वह उसके उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी ॥ ४६॥ वह अनुत्कृष्ट उत्कृष्टकी अपेक्षा एक समय कम है ॥ ४७ ॥ छ. ८३
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