Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 809
________________ ६८४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १५, १० - तीस तीस कोडाकोडि सागरोपमोंको समयप्रबद्धार्थतासे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतनी मात्र ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीयकी एक एक प्रकृति सब प्रकृतियोंके कितने भाग प्रमाण है ? ॥ ८ ॥ वे उनके कुछ कम द्वितीय भाग प्रमाण हैं ॥ ९ ॥ एवं वेयणीय-मोहणीय-आउअ-णामा-गोद-अंतराइयाणं च णेयव्वं ॥१०॥ णवरि विसेसो सव्वपयडीणं केवडीओ भागो ? ॥११॥ असंखेज्जदिभागो॥१२॥ इसी प्रकार समयप्रबद्धार्थताके आश्रयसे वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तरायके सम्बन्धमें भी प्रकृत प्ररूपणा जाननी चाहिये ॥ १० ॥ विशेष इतना है कि वे सब प्रकृतियोंके कितने भाग प्रमाण है ? ॥ ११ ॥ वे उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ १२ ॥ खेत्तपच्चासे त्ति ॥१३॥ अब क्षेत्रप्रत्यास अनुयोगद्वारका अधिकार है ॥ १३ ॥ णाणावरणीयस्स कम्मस्स एक्केक्का पयडी जो मच्छो जोयणसहस्सियो सयंभूरमणसमुदस्स बाहिरिल्लए तडे अच्छिदो, वेयणसमुग्धादेण समुहदो, काउलेस्सियाए लग्गो, पुणरवि मारणंतियसमुग्धादेण समुहदो, तिणि विग्गहकंडयाणि काऊण से काले अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु उववज्जिहदि त्ति खेत्तपञ्चासाएण गुणिदाओ सव्वपयडीणं केवडिओ भागो ? ॥ १४ ॥ दुभागो देसूणो ॥ १५ ॥ जो महामत्स्य एक हजार योजनप्रमाण अवगाहनासे युक्त होता हुआ स्वयंभूरमण समुद्रके बाहिरी तटपर स्थित है, वेदनासमुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त है, कापोतलेश्यासे संलग्न है, फिर जो मारणान्तिक समुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त हुआ है, तीन विग्रहकाण्डकको करनेके अनन्तर समयमें नारकियोंमें उत्पन्न होगा; इस क्षेत्रप्रत्याससे समय प्रबद्धार्थताप्रकृतियोंको गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतनी ज्ञानावरण कर्मकी एक एक प्रकृति होती है । ये प्रकृतियां सब प्रकृतियोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? ॥ १४ ॥ वे उनके कुछ कम द्वितीय भाग प्रमाण हैं ॥ १५ ॥ __ एवं दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं ॥ १६ ॥ णवरि मोहणीय-अंतरायइस्स सव्वपयडीणं केवडिओ भागो ? ॥ १७ ॥ असंखेज्जदिभागो ॥ १८ ॥ इसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्मके सम्बन्धमें कहना चाहिये ॥ १६ ॥ विशेष इतना हैं कि मोहनीय और अन्तरायकी प्रकृत प्रकृतियां सब प्रकृतियोंके कितनेवें भाग प्रमाण है ? ॥ १७ ॥ वे उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ १८ ॥ वेयणीयस्स कम्मस्स पयडीओ वेयणीयस्स कम्मस्स एकेका पयडी अण्णदरस्स केवलिस्स केवलसमुग्धादेण समुहदस्स सव्वलोगं गयस्स खेत्तपञ्चासएण गुणिदाओ सबपर्यडीणं केवडिओ भागो ? ॥ १९ ॥ असंखेज्जदिभागो ॥ २० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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