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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
५, ५, १९
थाली, सकोरा, अरंजन और उलुंचण आदि अनेक प्रकारके भाजनविशेषोंकी प्रकृति मिट्टी है । घान और तर्पण आदिकी प्रकृति जौ और गेहूं है । यह सब नोकर्मप्रकृति हैं ॥ १८ ॥
जा सा थप्पा कम्पयडी णाम सा अट्ठविहा - णाणावरणीयकम्मपयडी, एवं दंसणावरणीय वेयणीय- मोहणीय - आउअ णामा - गोदअंतराइयकम्मपयडी चेदि ॥ १९ ॥ ज्ञानावरणीय कर्मप्रकृति, इसी प्रकार दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय कर्मप्रकृति है ॥ १९ ॥
णाणावरणीयस्स कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ १ ।। २० ।। णाणावरणीयस्स कम्मस्स पंच पयडीओ - आभिणिवोहिय णाणावरणीयं सुदणाणावरणीयं ओहिणाणावरणीयं मणपज्जवणाणावरणीयं केवलणाणावरणीयं चेदि ॥ २१ ॥
ज्ञानावरणीय कर्मकी कितनी प्रकृतियां हैं ? ॥ २० ॥ ज्ञानावरणीय कर्मकी पांच प्रकृतियां हैं- आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय, मन:पर्ययज्ञानावरणीय और केवलज्ञानावरणीय ॥ २१ ॥
जं तमाभिणिबोहियणाणावरणीयं णाम कम्मं तं चउव्विहं वा चउवीसदिविधं वा अट्ठावीसदिविधं वा बत्तीसदिविधं वा णादव्वाणि भवति ।। २२ ।। आभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय कर्म चार प्रकारका, चौबीस प्रकारका,
और बत्तीस प्रकारका जानना चाहिये ॥ २२ ॥
चउव्विहं ताव ओग्गहावरणीयं ईहावरणीयं अवायावरणीयं धारणावरणीयं चेदि ॥ २३ ॥
उसके चार भेद ये हैं अवग्रहावरणीय, ईहावरणीय, अवायावरणीय और धारणावरणीय ॥ जं तं ओग्गहावरणीयं णाम कम्मं तं दुविहं- अत्थोग्गहावरणीयं चैव वंजणोग्गहावरणीयं चेव || २४ || जं तं अत्थोग्गहावरणीयं णाम कम्मं तं थप्पं ।। २५ ।।
अट्ठाईस प्रकारका
उनमें अवग्रहावरणीय कर्म दो प्रकारका है- अर्थावग्रहावरणीय और व्यञ्जनावग्रहावरणीय || २४ || जो अर्थावग्रहावरणीय कर्म है उसे इस समय स्थगित किया जाता है || २५ ॥
जं तं वंजणोग्गहावरणीयं णाम कम्मं तं चउव्विहं - सोदिदियवंजणोग्गहावरणीयं घाणिदियवंजणोरगहावरणीयं जिब्भिदियवंजणोग्गहावरणीयं फांसिंदियवंजणोग्गहावरणीयं चैव ॥ २६ ॥
जो व्यंजनाग्रहावरणीय कर्म है वह चार प्रकारका है-- श्रोत्रेन्द्रियव्यंजनावग्रहावरणीय, घ्राणेन्द्रियव्यंजनावग्रहावरणीय, जिह्वेन्द्रियव्यंजनावग्रहावरणीय और स्पर्शनेन्द्रियव्यंजनावग्रहावरणीय |
जं तं थप्पमत्थोग्गहावरणीयं णाम कम्मं तं छव्विहं ॥ २७ ॥ चक्खिदियअत्थोगावरणीयं सोदिदियअत्थोग्गहावरणीयं घाणिदियअत्थोग्गहावरणीयं जिभिर्दियअत्थो
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