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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
[ ५, ६, ३२
अर्ध भागसे लेकर चतुर्थ भाग तक धर्मास्तिकदेश कहा जाता है, ऐसे धर्मास्तिकदेशोंका जो अपने अवयवोंके साथ सम्बन्ध है उसे धर्मास्तिकदेशबन्ध जानना चाहिये । उक्त धर्मास्तिकायके चतुर्थ भागसे सब ही अवयवोंका नाम धर्मास्तिकप्रदेश तथा उनका जो परस्पर सम्बन्ध है उसका नाम धर्मास्तिकप्रदेशबन्ध है। यहीं प्रक्रिया अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकायके सम्बन्धमें भी जानना चाहिये । इन तीनों ही अस्तिकायोंकेप्रदेशोंका जो परस्पर सम्बन्ध है उस सबको अनादिविस्रसाबन्ध समझना चाहिये।
जो सो थप्पो सादियविस्ससाबंधो णाम तस्स इमो णिदेसो- वेमादा णिद्धदा वेमादा ल्हुक्खदा बंधो ॥ ३२ ॥
जो वह सादिविस्रसाबन्ध स्थगित किया गया था उसका निर्देश इस प्रकार है- विसदृश स्निग्धता और विसदृश रूक्षता बन्ध है-- बन्धकी कारण होती है ॥ ३२ ॥
यहां मादा शब्दसे सदृशता और विमादा शब्दसे विसदृशता अभिप्रेत है, ऐसा समझना चाहिये।
समणिद्धदा समल्हुक्खदा भेदो ॥ ३३ ॥ समान सिधता और समान रूक्षता भेद है ॥ ३३ ॥
अभिप्राय यह है कि स्निन्ध परमाणुओंका अन्य स्निग्ध परमाणुओंके साथ तथा रूक्ष परमाणुओंका अन्य रूक्ष परमाणुओंके साथ बन्ध नहीं होता है।
णिद्धणिद्धाण बझंति ल्हुक्ख-ल्हुक्खा य पोग्गला । णिद्ध-ल्हुक्खा य बझंति रूवारूवी य पोग्गला ॥ ३४ ॥
स्निग्ध पुद्गलपरमाणु अन्य स्निग्ध पुद्गलपरमाणुओंके साथ नहीं बंधते । इसी प्रकार रूक्ष पुद्गलपरमाणु अन्य रूक्ष पुद्गलपरमाणुओंके साथ नहीं बंधते । किन्तु सदृश और विसदृश ऐसे स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलपरमाणु परस्पर बंधको प्राप्त होते हैं ॥ ३४॥
अभिप्राय यह है कि समान गुणवाले स्निग्ध परमाणुओंका अन्य स्निग्ध परमाणुओंके साथ तथा समान गुणवाले रूक्ष परमाणुओंका अन्य रूक्ष परमाणुओंके साथ परस्पर बन्ध नहीं होता है । परन्तु स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलपरमाणुओंका, चाहे वे रूपी- गुणाविभागप्रतिच्छदोंसे समानहों और चाहे अरूपी- उक्त गुणाविभागप्रतिच्छेदोंसे असमान- हों तो भी उनका परस्पर बन्ध होता है।
वेमादाणिद्धदा वेमादाल्हुक्खदा बंधो ॥ ३५ ॥ दो गुणमात्र स्निग्धता और दो गुणमात्र रूक्षता परस्पर बन्धकी कारण है ॥ ३५ ॥
अभिप्राय यह है कि जो स्निग्ध परमाणु उस स्निग्धतामें दो अविभागप्रतिच्छेदों अधिक और हीन हैं उनका परस्पर बन्ध होता है। यही क्रम रूक्ष परमाणुओंके भी परस्पर बन्धमें जानना चाहिये।
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