Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 858
________________ ५, ३, ८०] बंधणाणियोगद्दारे वग्गणपरूवणादिअणियोगद्दारणिद्देसो [७३३ वर्गणानयविभाषणताका प्रकरण है- कौन नय किन वर्गणाओंको स्वीकार करता है ? नैगम, व्यवहार और संग्रहनय सब वर्गणाओंको स्वीकार करते हैं । ७२ ॥ उजुसुदो दुवणवग्गणं णेच्छदि ॥ ७३ ॥ ऋजुसूत्रनय स्थापनावर्गणाको नहीं स्वीकार करता ॥ ७३ ॥ सद्दणओ णामवग्गणं भाववग्गणं च इच्छदि ॥ ७४ ॥ शब्दनय नामवर्गणा और भाववर्गणाको स्वीकार करता है ॥ ७४ ॥ वग्गणदव्वसमुदाहारे त्ति तत्थ इमाणि चोद्दस अणियोगद्दाराणि- वग्गणपरूवणा वग्गणणिरूवणा वग्गणधुवाधुवाणुगमो वग्गणसांतर-णिरंतराणुगमो वग्गणओज-जुम्माणुगमो वग्गणखेत्ताणुगमो वग्गणफोसणाणुगमो वग्गणकालाणुगमो वग्गणअंतराणुगमो वग्गणभावाणुगमो वग्गणउवणयणाणुगमो वग्गणपरिमाणाणुगमो वग्गणभागाभागाणुगमो वग्गणअप्पाबहुए ति ॥ ७५ ॥ ___ वर्गणाद्रव्यसमुदाहारका प्रकरण है। उसमें ये चौदह अनुयोगद्वार हैं- वर्गणाप्ररूपणा, वर्गणानिरूपणा, वर्गणाध्रुवाध्रुवानुगम, वर्गणासान्तर-निरन्तरानुगम, वर्गणाओज-युग्मानुगम, वर्गणाक्षेत्रानुगम, वर्गणास्पर्शनानुगम, वर्गणाकालानुगम, वर्गणाअन्तरानुगम, वर्गणाभावानुगम, वर्गणाउपनयनानुगम, वर्गणापरिमाणानुगम, वर्गणाभागाभागानुगम और वर्गणाअल्पबहुत्त्वानुगम ।। ७५ ॥ वग्गणपरूवणदाए इमा एयपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा णाम ॥ ७६ ॥ वर्गणाकी प्ररूपणामें यह एकप्रदेशिकपरमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा है जो परमाणुस्वरूप है ॥ इमा दुपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा णाम ।। ७७ ॥ यह दो परमाणुओंके समुदायसे निष्पन्न द्विप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा है ॥७७॥ एवं तिपदेसिय- चदुपदेसिय-पंचपदेसिय - छप्पदेसिय - सत्तपदेसिय - अट्ठपदेसियणवपदेसिय- दसपदेसिय - संखेज्जपदेसिय- असंखेज्जपदेसिय- परित्तपदेसिय-अपरित्तपदेसियअणंतपदेसिय-अणंताणंतपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा णाम ॥ ७८ ॥ ___ इस प्रकार त्रिप्रदेशिक, चतुःप्रदेशिक, पञ्चप्रदेशिक, षट्प्रदेशिक, सप्तप्रदेशिक, अष्टप्रदेशिक, नवप्रदेशिक, दशप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक, परीतप्रदेशिक, अपरीतप्रदेशिक, अनन्तप्रदेशिक और अनन्तानन्तप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा है ॥ ७८ ॥ अणंताणंतपदेसियपरमाणुपोग्गलदव्ववग्गणाणमुवरि आहारदव्यवग्गणा णाम ॥७९॥ उत्कृष्ट अनन्तानन्तप्रदेशिक परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणाके आगे एक अंककी वृद्धि होनेपर जघन्य आहारद्रव्यवर्गणा होती है ॥ ७९ ॥ आहारदव्ववग्गणाणमुवरि अगहणदव्ववग्गणा णाम ॥ ८० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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