________________
७२४ ]
छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
[५, ६, २३
जो वह अविपाकप्रत्ययिक अजीवभावबन्ध है उसका निर्देश इस प्रकार है- विनसापरिणत वर्ण, विस्रसापरिणत शब्द, विस्रसापरिणत गन्ध, विस्रसापरिणत रस, विनसापरिणत स्पर्श, विनसापरिणत गति, विस्रसापरिणत अवगाहना, विस्रसापरिणत संस्थान, विस्रसापरिणत स्कन्ध, विस्रसापरिणत स्कन्धदेश और विस्रसापरिणत स्कन्धप्रदेश; ये तथा इनको आदि लेकर और भी जो इसी प्रकारके विस्रसापरिणत संयुक्त भाव हैं वह सब अविपाकप्रत्ययिक अजीवभावबन्ध है ॥ २२ ॥
जो सो तदुभयपच्चइयो अजीवभावबंधो णाम तस्स इमो णिदेसो-पओअपरिणदा वण्णा वण्णा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा सदा सदा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा गंधा गंधा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा रसा रसा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा फासा फासा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा गदी गदी विस्ससापरिणदा [पओअपरिणदा ओगाहणा ओगाहणा विस्ससापरिणदा] पओअपरिणदा संठाणा संठाणा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा खंधा खंधा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा खंधदेसा खंधदेसा विस्ससापरिणदा पओअपरिणदा खंधपदेसा खंधपदेसा विस्ससापरिणदाजे चामण्णे एवमादिया पओअ-विस्ससापरिणदा संजुत्ता भावा सो सव्वो तदुभयपच्चइओ अजीवभावबंधो णाम ॥ २३ ॥
जो तदुभयप्रत्ययिक अजीवभावबन्ध है उसका निर्देश इस प्रकार है- प्रयोगपरिणत वर्ण और विस्रसापरिणत वर्ण, प्रयोगपरिणत शब्द और विस्रसापरिणत शब्द, प्रयोगपरिणत गन्ध और विस्रसापरिणत गन्ध, प्रयोगपरिणत रस और विस्रसापरिणत रस, प्रयोगपरिणत स्पर्श और विस्रसापरिणत स्पर्श, प्रयोगपरिणत गति और विस्रसापरिणत गति, [प्रयोगपरिणत अवगाहना और विस्रसापरिणत अवगाहना], प्रयोगपरिणत संस्थान और विस्रसापरिणत संस्थान, प्रयोगपरिणत स्कन्ध और विस्रसापरिणत स्कन्ध, प्रयोगपरिणत स्कन्धदेश और विस्रसापरिणत स्कन्धदेश, प्रयोगपरिणत स्कन्धप्रदेश और विस्रसापरिणत स्कन्धप्रदेश; ये तथा इनको आदि लेकर और भी जो प्रयोग और विस्रसापरिणत संयुक्त भाव हैं वह सब तदुभयप्रत्ययिक अजीवभावबन्ध है ॥ २३ ॥
अभिप्राय यह है कि प्रयोगपरिणत वर्णादिकोंके साथ जो विस्रसापरिणत वर्णादिकोंका संयोग और समवायरूप सम्बन्ध होता है उस सबको तदुभयप्रत्ययिक अजीवभावबन्ध जानना चाहिये।
जो सो थप्पो दव्वबंधो णाम सो दुविहा- आगमदो दव्वबंधो चेव णोआगमदो दव्वबंधो चेव ॥ २४॥
जिस द्रव्यबन्धको स्थगित कर आये हैं वह दो प्रकारका है- आगम द्रव्यबन्ध और नोआगम द्रव्यबन्ध ॥ २४ ॥
जो सो आगमदो दव्वबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो- द्विदं जिदं परिजिदं वायणोवगदं सुत्तसमं अत्थसमं गंथसमं णामसमं घोससमं । जा तत्थ वायणा वा पुच्छणा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org