________________
बंधणाणियोगद्दारे सरीरबंधपरूवणा
[ ७२९ ओरालिय-ओरालियसरीरबंधो ॥ ४५ ॥
औदारिकशरीरस्वरूप नोकर्मपुद्गलस्कन्धोंका जो अन्य औदारिकशरीररूप नोकमपुद्गलस्कन्धोंके साथ बन्ध होता है वह औदारिक-औदारिकशरीरबन्ध कहलाता है ॥ ४५ ॥
यह एक संयोगसे एक ही भंगरूप शरीरबन्ध है । ओरालिय-तेयासरीरबंधो ॥ ४६॥ ओरालिय-कम्मइयसरीरबंधो ॥४७॥
एक ही जीवमें जो औदारिकशरीररूप पुद्गलस्कन्धोंका तैजसशरीररूप पुद्गलस्कन्धोंके साथ बन्ध होता है वह औदारिक-तैजसशरीरबन्ध कहलाता है ॥ ४६॥ औदारिकशरीररूप पुद्गलस्कन्धोंका जो कार्मणशरीररूप पुद्गलस्कन्धोंके साथ बन्ध होता है उसे औदारिक-कार्मणशरीरबन्ध जानना चाहिये ॥ ४७ ॥
इस प्रकार द्विसंयोगी भंग दो ही होते हैं। कारण यह कि औदारिकशरीरका तैजस और कार्मण शरीरोंके अतिरिक्त अन्य वैक्रियिक एवं आहारक शरीरोंके साथ बन्ध सम्भव नहीं है। यद्यपि मनुष्योंमें औदारिकशरीरके साथ आहारकशरीर कदाचित् पाया जाता है तथापि उस समय चूंकि औदारिकशरीरका उदय नहीं रहता है, अत एव उसे यहां नहीं ग्रहण किया गया है ।
ओरालिय-तेया-कम्मइयसरीरबंधो ॥४८॥
एक ही जीवमें स्थित औदारिक, तैजस और कार्मणशरीररूप स्कन्धोंका जो परस्पर बन्ध होता है वह औदारिक-तैजस-कार्मणशरीरबन्ध है । यह त्रिसंयोगी एक ही भंग है ॥ ४८ ॥
वेउब्बिय-उब्वियसरीरबंधो ॥४९॥ वेउब्बिय-तेयासरीरबंधो ॥५०॥ वेउन्विय कम्मइयसरीरबंधो ॥५१॥
एक ही जीवमें वैक्रियिकशरीररूप पुद्गलस्कन्धोंका जो अन्य वैक्रियिकशरीररूप पुद्गलस्कन्धोंके साथ बन्ध होता है वह वैक्रियिक वैक्रियिकशरीरबन्ध है ॥ ४९ ॥ वैक्रियिकशरीरबन्धोंका जो तैजसशरीरस्कन्धोंके साथ बन्ध होता है वह वैक्रियिक-तैजसशरीरबन्ध है ॥ ५० ॥ वैक्रियिक और कार्मणशरीरबन्धोंका जो एक ही जीवमें परस्पर बन्ध होता हैं वह वैक्रियिक-कार्मणशरीरस्कन्ध है ॥ ५१ ॥
ये वैक्रियिकशरीर सम्बन्धी तीन द्विसंयोगी भंग हैं । वेउन्विय-तेयाकम्मइयसरीरबंधो ॥५२॥
वैक्रियिक, तैजस और कार्मण शरीरस्कन्धोंका जो एक ही जीवमें परस्पर बन्ध होता है वह वैक्रियिक-तैजस-कार्मणशरीरबन्ध कहलाता है ॥ ५२ ॥
यह एक वैक्रियिकशरीर सम्बन्धी त्रिसंयोगी भंग है ।
आहार-आहारसरीरबंधो ॥ ५३ ॥ आहार-तेयासरीरबंधो॥ ५४॥ आहार-कम्मइयसरीरबंधो ।। ५५॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org