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५, ६, ४० ] बंधणाणियोगद्दारे दव्वबंधपरूवणा
[७२७ णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिणए ल्हुक्खस्स ल्हुक्खेण दुराहिएण । णिद्धस्स ल्हुक्खेण हवेदि बंधो जहण्णवज्जे विसमे समे वा ॥ ३६ ॥
स्निग्ध पुद्गलका दो गुण अधिक स्निग्ध पुद्गलके साथ और रूक्ष पुद्गलका दो गुण अधिक रूक्ष पुद्गलके साथ बन्ध होता है, तथा स्निग्ध पुद्गलका रूक्ष पुद्गलके साथ विषम अथवा सम भी अविभाग प्रतिच्छेदोंके रहनेपर बन्ध होता है। परन्तु जघन्य गुणवाले पुद्गलोंका किसी भी अवस्था बन्ध नहीं होता है ।। ३६ ॥
से तं बंधणपरिणामं पप्प से अब्भाणं वा मेहाणं वा संज्झाणं वा विज्जूणं वा उक्काणं वा कणयाणं वा दिसादाहाणं वा धूमकेदणं वा इंदाउहाणं वा से खेत्तं पप्प कालं पप्प उडुं पप्प अयणं पप्प पोग्गलं पप्प जे चामण्णे एवमादिया अंगमलप्पहुडीणि बंधणपरिणामेण परिणमंति सो सव्वो सादियविस्ससाबंधो णाम ॥ ३७॥
इस प्रकार जघन्य गुणयुक्त पुद्गलको छोड़कर शेष पुद्गल क्षेत्रको प्राप्त होकर, कालको प्राप्त होकर, ऋतुविशेषको प्राप्त होकर, दक्षिण-उत्तररूप अयनको प्राप्त होकर तथा पूरण-गलनस्वरूप पुद्गलको प्राप्त होकर जो अभ्र (वर्षाके अयोग्य मेघ), मेघ (वर्षाके योग्य काले मेघ), सन्ध्या, विद्युत् (आकाशमें मेघोंके चमकनेवाला तेजपुंज), उल्का (आकाशसे नीचे गिरनेवाला अग्निपिण्डके समान तेजपुंज), कनक (वज्र ), दिशादाह, धूमकेतु (धूमषष्टिके समान आकाशमें उपलभ्यमान उपद्रव जनक पुद्गलपिण्ड) और इन्द्रधनुषके आकारसे परिणत होते हैं तथा इनको आदि लेकर अन्य भी जो अमंगल आदि स्वरूपसे परिणत होते हैं; उस सबको सादि विस्रसाबन्ध जानना चाहिये ॥ ३७॥
जो सो थप्पो पओअबंधो णाम सो दुविहो– कम्मबंधो चेव णोकम्मबंधो चेव ।।
जो वह प्रयोगबन्ध स्थगित किया गया था वह दो प्रकारका है- कर्मबन्ध और नोकर्मबन्ध ॥ ३८ ॥
जो सो कम्मबंधो णाम सो थप्पो ॥ ३९ ॥ जो वह कर्मबन्ध है उसे अभी स्थगित करते हैं ॥ ३९ ॥
जो सो णोकम्मबंधो णाम सो पंचविहो- आलावणबंधो अल्लीवणबंधो संसिलेसबंधो सरीरबंधो सरीरिबंधो चेदि ॥ ४० ॥
जो वह नोकर्मबन्ध है वह पांच प्रकारका है- आलापनबन्ध, अल्लीवनबन्ध, संश्लेषबन्ध, शरीरबन्ध और शरीरिबन्ध ॥ ४० ॥
जो सो आलावणबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो- से संगडाणं वा जाणाणं वा जुगाणं वा गड्डीणं वा गिल्लीणं वा रहाणं वा संदणाणं वा सिवियाणं वा गिहाणं वा पासादाणं
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