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५, ६, ३१] बंधणाणियोगद्दारे दव्वबंधपरूवणा
[ ७२५ वा पडिच्छणा वा परियदृणा वा अणुपेहणा वा थय-थुदि-धम्म-कहा वा जे चामण्णे एवमादिया अणुवजोगा दव्वे त्ति कटु जावदिया अणुवजुत्ता भावा सो सव्वो आगमदो दव्वबंधो णाम ॥२५॥
जो वह आगम द्रव्यबन्ध है उसका निर्देश इस प्रकार है- स्थित, जित, परिजित, वाचनोपगत, सूत्रसम, अर्थसम, ग्रन्थसम, नामसम और घोषसम; इनके विषयमें वाचना, पृच्छना, प्रतीच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षणा, स्तव, स्तुति और धर्मकथा तथा इनको आदि लेकर जो और भी अन्य अनुपयोग हैं उनमें द्रव्यनिपेक्ष रूपसे जितने अनुपयुक्त भाव हैं वह सब आगमद्रव्यबन्ध है ॥
जो सो णोआगमदो दव्वबंधो सो दुविहो- पओअबंधो चेव विस्ससाबंधो चेव ॥ २६ ॥
जो नोआगमद्रव्यबन्ध हैं वह दो प्रकारका है- प्रयोगबन्ध और विस्रसाबन्ध ॥ २६ ॥ जो सो पओअबंधो णाम सो थप्पो ॥२७॥ जो प्रयोगबन्ध है उसे स्थगित करते हैं- उसकी प्ररूपणा आगे की जाएगी ॥ २७ ॥
जो सो विस्ससाबंधो णाम सो दुविहो- सादियविस्ससाबंधो चेव अणादियविस्ससाबंधो चेव ॥ २८॥
जो वह विस्रसाबन्ध है वह दो प्रकारका हैं- सादिविस्रसाबन्ध और अनादिविस्रसाबन्ध ॥ जो सो सादियविस्ससाबंधो णाम सो थप्पो ॥ २९॥ जो सादि विस्रसाबन्ध है उसे अभी स्थगित करते हैं ॥ २९ ॥
जो सो अणादियविस्ससाबंधो णाम सो तिविहो- धम्मत्थिया अधम्मत्थिया आगासत्थिया चेदि ॥ ३० ॥
___ जो वह अनादि विस्रसाबन्ध है वह तीन प्रकारका है- धर्मास्तिकायविषयक, अधर्मास्तिकाय और आकशास्तिकायविषयक ॥ ३० ॥
धम्मत्थिया धम्मत्थियदेसा धम्मत्थियपदेसा, अधम्मत्थिया अधम्मत्थियदेसा, आगासत्थिया आगासत्थियदेसा आगासत्थियपदेसा, एदासिं तिण्णं पि अत्थिआणमण्णोण्ण पदेसबंधो होदि ॥ ३१ ॥
धर्मास्तिक, धर्मास्तिकदेश और धर्मास्तिकप्रदेश; अधर्मास्तिक, अधर्मास्तिकदेश और अधर्मास्तिकप्रदेश; तथा आकाशास्तिक, आकाशास्तिकदेश और आकाशास्तिकप्रदेश; इन तीनों ही अस्तिकायोंका परस्पर प्रदेशबन्ध होता है ।। ३१ ॥
धर्मास्तिकायके समस्त अवयवसमूहका नाम धर्मास्तिकाय है, इस अवयवीस्वरूप धर्मास्तिकायका जो अपने अवयवोंके साथ सम्बन्ध है वह धर्मास्तिकबन्ध कहलाता है । उस धर्मास्तिकायके
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