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६, १८ ]
णिबंधणाणियोगद्दारे भावबंधपरूवणा
[ ७२१
जो सो अविवागपच्चयो जीवभावबंधो णाम सो दुविहो - उवसमियो अविवागपच्चयो जीवभावबंधो चैव खइयो अविवागपच्चइओ जीवभावबंधो चेव ॥ १६ ॥
जो वह अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है वह दो प्रकारका है- औपशमिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध और क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध ॥ १६ ॥
जो सो समिओ अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो- से वसंतको उवसंतमाणे उवसंतमाए उवसंतलोहे उवसंतरागे उवसंतदोसे उवसंतमोहे उवसंतकसायवियरागछदुमत्थे उवसमियं सम्मत्तं उवसमियं चारित्तं जे चाम्मणे एवमादिया उवसमिया भावा सो सव्वो उवसमियो अविवागपच्चड्यो जीवभावबंधो णाम ।। १७ ।।
जिस जीवका क्रोध उपशान्त हो गया है, जिसका मान उपशान्त हो गया है, जिसकी माया उपशान्त हो गई है, जिसका लोभ उपशान्त हो गया है, जिसका राग उपशान्त हो गया है, जिसका दोष उपशान्त हो गया है और जिसका मोह उपशान्त हो गया है उन जीवोंके तथा जिसका पच्चीस प्रकारका समस्त ही चारित्रमोह उपशान्त हो गया है ऐसे उपशान्त कषाय- वीतरागछद्मस्थ जीवके भी जो जीवभाग होता है वह औपशमिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध कहा जाता है । इसके अतिरिक्त औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र तथा इनको आदि लेकर और भी जो औपशमिक भाव हैं उन सबको औपशमिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध जानना चाहिये ॥ १७ ॥
जो सो खइओ अविवागपच्चइयो जीवभावबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो- से खीणको खीणमाणे खीणमाये खीणलोहे खीणरागे खीणदोसे खीणमो हे खीणकसाय- चीयरायछदुमत्थे खइयसम्मत्तं खइयचारितं खइया दाणलद्धी खइया लाहलद्धी खइया भोगलद्धी खाइया परिभोगलद्धी खइया वीरियलद्धी केवलणाणं केवलदंसणं सिद्धे बुद्धे परिणिव्वुदे सव्वदुक्खाणमंतयडे ति जे चामण्णे एवमादिया खझ्या भावा सो सव्वो खइयो अविवागपच्चयो जीवभावबंधो णाम ॥ १८ ॥
जो वह क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध है उसका निर्देश यह है- जिस जीवका क्रोध क्षीण हो चुका है, जिसका मान क्षीण हो चुका है, जिसकी माया क्षीण हो चुकी है, जिसका लोभ क्षीण हो चुका है, जिसका राग क्षीण हो चुका है, जिसका दोष क्षीण हो चुका है, और जिसका अट्ठाईस प्रकारका मोह क्षीण हो चुका है; उन जीवोंके तथा जिसका पच्चीस भेदरूप समस्त चारित्रमोह क्षीण हो चुका है ऐसे क्षीणकषाय- वीतराग छद्मस्थके भी जो जीवभाव उत्पन्न होता है वह भी क्षायिक अविपाकप्रत्ययिक जीवभावबन्ध कहलाता है । इसके अतिरिक्त क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, क्षायिक दानलब्धि, क्षायिक क्षायिक परिभोगलब्धि, क्षायिक वीर्यलब्धि, केवलज्ञान, केवलदर्शन,
लाभलब्धि, क्षायिक . भोगलब्धि, सिद्धत्व, बुद्धत्व, परिनिवृत्तत्व,
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