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५, ५, ६४ ] पयडिअणिओगद्दारे अणेयसंठाणसंठिदाणि
[ ७०३ वह अनेक प्रकारका है- देशावधि, परमावधि, सर्वावधि, हीयमान, वर्धमान, अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी, सप्रतिपाती अप्रतिपाती, एकक्षेत्र और अनेक क्षेत्र ॥ ५७ ॥
खेत्तदो ताव अणेयसंठाणसंठिदा ॥ ५८ ॥ सिरिवच्छ-कलस-संख-सोत्थिय-णंदावतादीणि संणाणाणि णादव्वाणि भवंति ॥ ५९ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा अवधिज्ञानावरणके क्षयोपशमको प्राप्त जीवप्रदेश अनेक आकारोंमें संस्थान स्थित होते हैं ॥ ५८ ॥ वे श्रीवत्स, कलश, शंख, स्वस्तिक (सांथिया) और नन्दावर्त आदि आकार जानने योग्य हैं ।। ५९ ॥
कालदो ताव समयावलिय-खण-लव-मुहुत्त-दिवस-पक्ख-मास-उडु-अयण-संवच्छरजुग-पुव्व-पव्व-पलिदोवम-सागरोवमादओ विधओ णादव्वा भवंति ॥ ६० ॥
कालकी अपेक्षा तो समय, आवलि, क्षण, लव, मुहूर्त, दिवस, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, पूर्व, पर्व, पल्योपम और सागरोपम आदि ज्ञातव्य हैं । ६० ॥
ओगाहणा जहण्णा णियमा दु सुहुमणिगोदजीवस्स । जद्देही तदेही जहणिया खेत्तदो ओही ॥ ६१ ॥
सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तक जीवकी जितनी जघन्य अवगाहना होती है उतना अवधिज्ञान जघन्य क्षेत्र है ॥ ६१ ॥
अंगुलमावलियाए भागमसंखेज्ज दो वि संखेज्जा । अंगुलमाविलियंतो आवलियं चांगुलपुधत्तं ॥ ६२ ॥
जहां अवधिज्ञानका क्षेत्र घनांगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। वहां काल आवलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । जहां क्षेत्र घनांगुलके संख्यातवां भाग है वहां काल आवलिके संख्यातवें भाग है । जहां क्षेत्र घनांगुलप्रमाण है वहां काल कुछ कम एक आवलि प्रमाण है। जहां काल एक आवलि प्रमाण है वहां क्षेत्र घनांगुलपृथत्क्व प्रमाण है ॥ ६२ ॥
आवलियपुधत्तं घणहत्थो तह गाउअं मुहुत्तंतो। जोयण भिण्णमुहुत्तं दिवसंतो पण्णवीसं तु ॥ ६३ ॥
जहां काल आवलिपृथक्त्व प्रमाण है वहां क्षेत्र घनहाथप्रमाण है । जहां क्षेत्र घनकोस प्रमाण है वहां काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। जहां क्षेत्र घनयोजन प्रमाण है वहां काल भिन्नमुहूर्त प्रमाण है। जहां काल कुछ कम एक दिवस प्रमाण है वहां क्षेत्र पच्चीस घनयोजन प्रमाण है ॥६३॥
भरहम्मि अद्धमासं साहियमासं च जंबुदीवम्मि । वासं च मणुअलोए वासपुधत्तं च रूजगम्मि ॥ ६४ ॥ जहां क्षेत्र घनरूप भरतवर्ष है वहां काल आधा मास है। जहां क्षेत्र घनरूप जम्बूदीप
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