Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 839
________________ ७१४ ] छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं [५, ५, १२५ जो वह शरीरसंस्थान नामकर्म है वह छह प्रकारका है- समचतुरस्रशरीरसंस्थान, न्यग्रोधपरिमण्डलशरीरसंस्थान, स्वातिशरीरसंस्थान, कुब्जशरीरसंस्थान, वामनशरीरसंस्थान और हुण्डशरीरसंस्थान नामकर्म ॥ १२४ ॥ जं तं सरीरअंगोवंगणामं तं तिविहं- ओरालियसरीरअंगोवंगणाम बेउव्वियसरीरअंगोवंगणामं आहारसरीरअंगोवंगणामं चेदि ॥ १२५ ॥ ___जो वह शरीरआंगोपांग नामकर्म है वह तीन प्रकारका है-- औदारिकशरीरआंगोपांग, वैक्रियिकशरीरआंगोपांग और आहारकशरीरआंगोपांग नामकर्म ॥ १२५ ॥ जं तं सरीरसंघडणणामं तं छव्विहं- वज्जरिसहवइरणारायणसरीरसंघडणणामं वज्जणारायणसरीरसंघडणणामं णारायणसरीरसंघडणणामं अद्धणारायणसरीरसंघडणणामं खीलियसरीरसंघडणणामं असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडणणामं चेदि ॥ १२६ ॥ जो वह शरीरसंहनन नामकर्म है वह छह प्रकारका है-- वज्रर्षभवज्रनाराचशरीरसंहनन, वज्रनाराचशरीरसंहनन, नाराचशरीरसंहनन, अर्धनाराचशरीरसंहनन, कीलितशरीरसंहनन और असंप्राप्तासृपाटिकाशरीरसंहनन नामकर्म ।। १२६ ।। जं तं वण्णणामकम्मं तं पंचविहं- किण्णवण्णणामं णीलवण्णणामं रुहिरवण्णणाम हलिद्दवण्णणामं सुकिलवण्णणामं चेदि ॥ १२७ ।। जो वह वर्ण नामकर्म है वह चार प्रकारका है- कृष्णवर्ण, नीलवर्ण, रुधिरवर्ण, शुक्लवर्ण, और हरिद्रवर्ण नामकर्म ॥ १२७ ॥ जं तं गंधणामं तं दुविहं- सुरहिगंधणामं दुरहिगंधणामं चेदि ॥ १२८ ॥ जो वह गन्ध नामकर्म है वह दो प्रकारका है-- सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध नामकर्म ॥ जं तं रसणामं तं पंचविहं-त्तित्तणामं कडवणामं कसायणामं अंबिलणामं महुरणामं चेदि ॥ १२९ ॥ जो वह रसनामकर्म है वह पांच प्रकारका है- तिक्त, कटुक, कषाय, आम्ल और मधुर नामकर्म ॥ १२९ ॥ जंतं फासणामं तमट्ठविहं- कक्खडणामं मउअणामं गरूवणामं लहुअणामं णिद्धणाम ल्हुक्खणामं सीदणामं उसुणणामं चेदि ॥ १३० ॥ जो वह स्पर्श नामकर्म है वह आठ प्रकारका है- कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण नामकर्म ॥ १३० ॥ जंतं आणुपुग्विणामं तं चउन्विहं-णिरयगइपाओग्गाणुपुग्विणामं तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुरिणाम मणुसगइपाओग्गाणुपुब्बिणामं देवगइपाओग्गाणुपुब्बिणामं चेदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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