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फासणिओगद्दारे फासणयविभासणदा
फासणयविभासणदाए ॥ ५ ॥ स्पर्शनयविभाषणताका अधिकार है ॥ ५ ॥ कोणओ के फासे इच्छदि १ ॥ ६ ॥ कौन नय किन स्पर्शोको स्वीकार करता है ? ॥ ६ ॥
सव्वेदे फासा बोद्धव्वा होंति णेगमनयस्स ।
छदि य बंध-भवियं ववहारो संगहणओ य ॥ ७ ॥
नैगमन के ये सब स्पर्श विषय होते हैं। नैगम नय इन सब ही स्पर्शोको स्वीकार करता है; यह अभिप्राय जानना चाहिये । व्यवहारनय और संग्रहनय बन्धस्पर्श और भव्यस्पर्श इन स्पर्शोको स्वीकार नहीं करते हैं ॥ ७ ॥
५, ३, १० ]
एयक्खेत्तमणंतरबंधं भवियं च णेच्छदुज्जुसुदो ।
णामं च फासफासं भावप्फासं च सद्दणओ ॥ ८ ॥
ऋजुसूत्र एक क्षेत्रस्पर्श; अनन्तरस्पर्श, बन्धस्पर्श और भव्यस्पर्शको स्वीकार नहीं करता शब्दनय नामस्पर्श, स्पर्शस्पर्श और भावस्पर्शको ही स्वीकार करता है ॥ ८ ॥
जो सो णामफासो णाम सो जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाणं वा अजीवाणं वा जीवस्स च अजीवस्स च जीवस्स च अजीवाणं च जीवाणं च अजीवस्स च जीवाणं च अजीवाणं च जस्स णाम कीरदि फासे त्ति सो सव्वो णामफासो णाम ॥ ९ ॥
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जो वह नामस्पर्श है वह एक जीव, एक अजीव, नाना जीव, नाना अजीव, एक जीव और एक अजीव, एक जीव और नाना अजीव, नाना जीव और एक अजीव तथा नाना जीव और नाना अजीव; इनमेंसे जिसका 'स्पर्श' ऐसा नाम किया जाता है उसका नाम स्पर्श है ॥ ९ ॥
जो सो ठवणफासो णाम सो कटुकम्मेसु वा चित्तकम्मेसु वा पोत्तकम्मेसु वा लेप्पकम्मे वाले कम्मेसु वा सेलकम्मेसु वा गिहकम्मेसु वा भित्तिकम्मेसु वा दंतकम्मे सु वा कम्मे वा अक्खो वा वराडओ वा जे चामण्णे एवमादिया ठवणाए ठविज्जदि फासे त्ति सो सव्वो ठवणफासो णाम ।। १० ।।
जो वह स्थापना स्पर्श है वह काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पोतकर्म, लेप्यकर्म, लयनकर्म, शैलकर्म, गृहकर्म, भित्तिकर्म, दन्तकर्म और भेंडकर्म; इनमें तथा अक्ष और वराटक एवं इनको आदि लेकर और भी जो हैं उनके विषय में जो 'यह स्पर्श है' इस प्रकारकी बुद्धिपूर्वक अभेदकी स्थापना की जाती है वह सब स्थापनास्पर्श है ॥ १० ॥
छ. ८७
यहां काष्ठकर्म आदि पदोंके द्वारा 'सद्भावस्थापनाके' विषयका तथा अक्ष व वराटक .. पदोंके द्वारा असद्भावस्थापना के विषयका निर्देश किया गया है । 'जे चामण्णे एवमादिया' इस प्रकारके जो अन्य भी हैं । इसका सम्बन्ध उक्त दोनों प्रकारकी स्थापनाके विषय में जोड़ना चाहिये ।
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