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सिरि-भगवंत-पुप्फदंत-भूदबलि-पणीदो
छक्खंडागमो तस्स पंचमेखंडे - वग्गणाए
३. फासाणिओगद्दारं फासे त्ति ॥१॥ अब स्पर्श अनुयोगद्वार प्रकृत है ॥ १ ॥
तत्थ इमाणि सोलस अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति-फासणिक्खेवे फासणयविभासणदाए फासणामविहाणे फासदव्वविहाणे फासखेत्तविहाणे फासकालविहाणे फासभावविहाणे फासपचयविहाणे फाससामित्तविहाणे फासफासविहाणे फासगइविहाणे फासअणंतरविहाणे फाससण्णियासविहाणे फासपरिमाणविहाणे फासभागाभागविहाणे फासअप्पाबहुए त्ति ॥२॥
उसमें ये सोलह अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं- स्पर्शनिक्षेप, स्पर्शनयविभाषणता, स्पर्शनामविधान, स्पर्शद्रव्यविधान, स्पर्शक्षेत्रविधान, स्पर्शकालविधान, स्पर्शभावविधान, स्पर्शप्रत्ययविधान, स्पर्शस्वामित्वविधान, स्पर्श-स्पर्शविधान, स्पर्शगतिविधान, स्पर्शअनन्तरविधान, स्पर्शसंनिकर्षविधान, स्पर्शपरिमाणविधान- स्पर्शभागाभागविधान और स्पर्श अल्पबहुत्व ॥२॥
फासणिक्खेवे त्ति ॥३॥
उपर्युक्त सोलह अधिकारोंमें प्रथम स्पर्शनिक्षेप अधिकृत है-- उसकी प्ररूपणा की जाती हैं ॥ ३ ॥
तेरसविहे फासणिक्खेवे- णामफासे ठवणफासे दव्वफासे एयखेत्तफासे अणंतरखेत्तफासे देसफासे तयफासे सव्वफासे फासफासे कम्मफासे बंधफासे चेदि ॥ ४ ॥
___वह स्पर्शनिक्षेप तेरह प्रकारका है- नामस्पर्श, स्थापनास्पर्श, द्रव्यस्पर्श, एकक्षेत्रस्पर्श, अनन्तरक्षेत्रस्पर्श, देशस्पर्श, त्वक्स्पर्श, सर्वस्पर्श, स्पर्शस्पर्श, कर्मस्पर्श, बन्धस्पर्श, भव्यस्पर्श और भावस्पर्श ॥ ४ ॥
यहां स्पर्श' शब्दके जो वे तेरह अर्थ निर्दिष्ट किये गये हैं उन्हें सामान्यसे समझना चाहिये, क्यों कि विशेषरूपसे उसके और भी अनेक अर्थ हो सकते हैं । (इसके स्वरूपका निर्देश आगे मूल ग्रन्थ कर्ताने स्वयं ही सूत्रों द्वारा किया है)
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