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५, ४, १४ ]
कम्माणिओगद्दारे णयविभासणदा
कम्मणयविभासणदार को णओ के कम्मे इच्छदि १ ॥ ५ ॥
कर्मविभाषण ताकी अपेक्षा कौन नय किन कर्मोंको स्वीकार करता है ? ॥ ५ ॥
गम-वहार-संगहा सव्वाणि ॥ ६ ॥
नैगम, व्यवहार और संग्रहनय सब कर्मोंको स्वीकार करते हैं ॥ ६ ॥ उजुदो दुवणकम्मं च्छदि ॥ ७ ॥
ऋजुसूत्र नय स्थापनाकर्मको स्वीकार नहीं करता ॥ ७ ॥ सद्दणओ णामकम्मं भावकम्मं च इच्छदि ॥ ८ ॥
शब्दtय नामकर्म और भावकर्मको स्वीकार करता है ॥ ८ ॥
जं तं णामकम्मं णाम ।। ९ ।। तं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाणं वा अजीवाणं वा जीवस्स च अजीवस्स च जीवस्स च अजीवाणं च जीवाणं च अजीवस्स च जीवाणं च अजीवाणं च जस्स णामं कीरदि कम्मे त्ति तं सव्वं णामकम्मं णाम ॥ १० ॥
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अब नामकर्म अधिकार प्राप्त है ॥ ९ ॥ एक जीव, एक अजीव, नाना जीव, नाना अजीव, एक जीव और एक अजीव, एक जीव और नाना अजीव, नाना जीव और एक अजीव तथा नाना जीव और नाना अजीव; इनमेंसे जिसका कर्म ऐसा नाम रखा जाता है वह सब नामकर्म है ॥ जंतं वणकम्मं णाम ॥ ११ ॥ तं कट्टकम्मेसु वा चित्तकम्मेसु वा पोत्तकम्मेसु
वा लेप्पकम्मेसु वा लेणकम्मेसु वा सेलकम्मेसु वा गिहकम्मेसु वा भित्तिकम्मेसु वा दंतकम्मेसु ar कम्मे वा अक्खो वा वराडओ वा जे चामण्णे एवमादिया ठेवणार ठविज्जदि कम्मे त्ति तं सव्वं ठवणकम्मं णाम ।। १२ ।।
अब स्थापना कर्मका अधिकार है ॥ ११ ॥ काष्ठकर्म, चित्रकर्म, पोतकर्म, लेप्यकर्म, लयनकर्म, शैलकर्म, गृहकर्म, भित्तिकर्म, दन्तकर्म और भेण्डकर्म; इनमें तथा अक्ष और वराटक एवं इनको आदि लेकर और भी जो 'यह कर्म है' इस प्रकार कर्मरूपसे एकत्वके संकल्पद्वारा बुद्धि में प्रस्थापित किये जाते हैं वह सब स्थापना कर्म है ॥ १२ ॥
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जं तं दव्वकम्मं णाम ।। १३ ।। जाणि दव्वाणि सन्भावकिरियाणिप्फण्णाणि तं सव्वं दव्वकम्मं णाम ॥ १४ ॥
अब द्रव्यकर्मका अधिकार है ॥ १३ ॥ जो द्रव्य सद्भावक्रियासे निष्पन्न हैं वह सब द्रव्यकर्म है ॥ १४ ॥
जीवादि द्रव्योंका जो अपने अपने स्वरूपसे परिणमन हो रहा है उसका नाम सद्भाव क्रिया है । जैसे- जीव द्रव्यका ज्ञान दर्शनस्वरूपसे परिणमन । इस प्रकारकी क्रियाओंसे जो विविध द्रव्योंकी निष्पत्ति होती है उस सबको द्रव्यकर्म जानना चाहिये ।
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