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६८२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, १४, ४० नामकर्मकी कितनी प्रकृतियां हैं ? ॥ ३७ ॥ बीस, अठारह, सोलह, पन्द्रह, चौदह, बारह और दस कोडाकोडि सागरोपमोंके समयप्रबद्धार्थतासे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतनी नामकर्मकी एक एक प्रकृति है ॥ ३८ ॥ उसकी इतनी प्रकृतियां है ॥ ३९ ॥
गोदस्स कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ?॥४०॥ गोदस्स कम्मस्स एकेका पयडी बीसं दस सागरोवम कोडाकोडीओ समयपबद्धट्ठदाए गुणिदाए ॥४१॥ एवडियाओ पयडीओ ॥४२॥
गोत्र कर्मकी कितनी प्रकृतियां है ? ॥ ४० ॥ बीस और दस कोडाकोडि सागरोपमोंके समयप्रबद्धार्थतासे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतनी गोत्र कर्मकी एक एक प्रकृति है ॥ ४१ ॥ उसकी इतनी प्रकृतियां हैं ॥ ४२ ॥
खेत्तपच्चासे ति ॥४३॥ अब क्षेत्रप्रत्यास अनुयोगद्वारका अधिकारप्राप्त है ॥ ४३ ॥ क्षेत्रप्रत्याससे अभिप्राय यहां जीवके द्वारा अवलाम्बित क्षेत्रकी क्षेत्रप्रत्याससंज्ञा है ।
णाणावरणीयस्स कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ ? ॥४४॥ णाणावरणीयस्स कम्मस्स जो मच्छो जोयणसहस्सओ संयभुरमणसमुदस्स बाहिरल्लए तडे अच्छिदो, वेयणसमुग्धादेण समुहदो, काउलेस्सियाए लग्गो, पुणरवि मारणंतियसमुग्धादेण समुहदो, तिण्णि विग्गहगदिकंदयाणि काऊण से काले अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु उववज्जिहदि त्ति ॥ ४५ ॥ खेत्तपञ्चासेण गुणिदाओ ॥ ४६॥ एवडियाओ पयडीओ ॥४७॥
झानावरणीय कर्मकी कितनी प्रकृतियां हैं ? ॥ ४४ ॥ जो एक हजार योजन प्रमाण मत्स्य स्वयम्भूरमण समुद्रके बाह्य तटपर स्थित है, वेदनासमुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त हुआ है, कापोतलेश्यासे संलग्न है, फिर भी मारणांतिकसमुद्घातको प्राप्त हुआ है, तीन विग्रह काण्डकोकों करके अनन्तर समयमें नीचे सातवीं पृथीवीके नारकियोंमें उत्पन्न होगा, उसके ज्ञानावरणीय कर्मकी जो प्रकृतियां हैं ॥ ४५ ॥ उन्हें उक्त क्षेत्रप्रत्याससे गुणित करनेपर जो प्राप्त है ॥ ४६ ॥ इतनी ज्ञानावरणीयकी प्रकृतियां हैं ॥ ४७ ॥
__ एवं दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं ॥४८॥
इसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्मोंके सम्बन्धमें भी प्रकृत प्ररूपणा जाननी चाहिये ॥ ४८ ॥
वेयणीयस्स कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ १ ॥४९॥ वेयणीयस्स कम्मस्स एकेका पयडी अण्णदरस्स केवलिस्स केवलिसमुग्धादेण समुग्धादस्स सव्वलोगं गदस्स ॥५०॥ खेत्तपच्चासेण गुणिदाओ ॥५१॥ एवडियाओ पयडीओ ॥५२॥
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