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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, १३, १८३
जिस जीवके नामकर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! ॥ १८९ ॥ उसके वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । जघन्यकी अपेक्षा वह अजघन्य पांच स्थानोंमें पतित होती है ॥ १८२ ॥
६६८ ]
तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा १ ।। १८३ ।। णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुण भहिया || १८४ ॥
उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! ॥ १८३ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १८४ ॥
तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। १८५ ।। णियमा अजहण्णा अणंतगुणभहिया || १८६ ॥
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! ॥ १८५ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और अनन्तगुणी अधिक होती है ॥ १८६ ॥
जस्स णामयणा भावदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥ १८७॥ णियमा अजहण्णा चउट्ठाण पदिदा ।। १८८ ॥
जिसके नामकर्मकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य : ॥ १८७ ।। उसके वह नियमसे अजघन्य होकर चार स्थानों में पतित होती है ॥ १८८ ॥
तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा १ ॥ १८९ ॥ जहण्णा वा अजहण्णा वा, जहणादो अजहण्णा चउट्ठाणपदिदा ।। १९० ॥
उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य : ॥ १८९ ॥ उसके वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । जघन्यकी अपेक्षा वह अजघन्य चार स्थानोंमें पतित होती है ॥ १९० ॥
तस्स कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥। १९१ ॥ णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुण भहिया ।। १९२ ।।
उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ १९९ ॥ वह उसके नियमसे अजघन्य होकर असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १९२ ॥
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जस्स गोदवेणा दव्वदो जहण्णा तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा १ ॥ १९३॥ णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुण भहिया ।। १९४ ॥
जिसके गोत्रकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! ॥ १९३ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १९४ ॥
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