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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, १३, २०९
तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ? || २०९ ।। णियमा अजहण्णा अनंतगुणभहिया ।। २१० ॥
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! || २०९ ।। उसके वह नियमसे अजघन्य और अनन्तगुणी अधिक होती है ॥ २१० ॥
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जस्स गोदवेणा भावदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ।। २११ ॥ णियमा अजहण्णा उड्डाणपदिदा ।। २१२ ।।
जिसके गोत्रकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य : ॥ २१९ ॥ वह उसके नियमसे अजघन्य होती हुई चार स्थानोंमें पतित होती है ॥ २१२ ॥
तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। २१३ ।। णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणभहिया ।। २१४ ॥
उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! || २१३ ।। वह उसके नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है || २१४ ॥
तस्स कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। २१५ ।। णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणभहिया || २१६ ॥
उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य : ॥ २१५ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ २१६ ॥
जो सो परत्थाणवेयणसणियासो सो दुविहो जहण्णओ परत्थाणवेयणसण्णियासो dr rate परत्थाणवेयणसण्णियासो चेव ।। २१७ ।।
जो वह परस्थान वेदनासंनिकर्ष है वह दो प्रकारका है जघन्य परस्थान वेदनासंनिकर्ष और उत्कृष्ट परस्थानवेदनासंनिकर्ष ॥ २९७ ॥
जो सो जाओ परत्थाणवेयणसण्णियासो जो थप्पो ।। २१८ ।।
जो वह जघन्य परस्थान वेदनासंनिकर्ष है वह अभी स्थगित रखा जाता है || २१८ ॥ जो सो उक्कस्सओ परत्थाणवेयणसण्णियासो सो चउबिहे - दव्वदो खेत्तदो कालो भाव चेदि || २१९ ।।
जो वह उत्कृष्ट परस्थान वेदनासंनिकर्ष है वह द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा चार प्रकारका है || २१९ ॥
जस्स णाणावरणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सा तस्स छण्णं कम्माणमा उववज्जाणं दव्वदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा || २२० ।। उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा उक्कसादो agrataragraददा ।। २२१ ।। अनंतभागहीणा वा असंखेज्जभागहीणा वा ॥ २२२ ॥
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