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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, १३, १२९
जिसके वेदनीयकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य : ॥ १२७ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य होती हुई असंख्यातभाग अधिक आदि स्थानों में पतित होती है ॥ १२८ ॥
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तसे कालदो किं जहण्णा [ अजहण्णा ] ? ।। १२९ ।। णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुण महिया ॥। १३० ।।
उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! ॥ १२९ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है १३० ॥
तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। १३१ ॥ णियमा अजहण्णा अणतगुणभहिया ।। १३२ ॥
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ १३१ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और अनन्तगुणी अधिक होती है ॥ १३२ ॥
जस्स वेयणीयवेणा कालदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। १३३ ।। जहण्णा अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा पंचट्ठाणपदिदा ॥ १३४ ॥ जिस जीवके वेदनीयकी वेदना कालकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके वह द्रव्यकी अपेक्षा क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! ॥ १३३ ॥ उसके वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य अनन्तभाग अधिक आदि पांच स्थानोंमें पतित होती है ॥ तस खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। १३५ ।। णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणभहिया ॥ १३६ ॥
उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ १३५ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १३६ ॥
तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १३७ ॥ जहण्णा वा अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा अणंतगुणन्भहिया १ ।। १३८ ॥
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ १३७ ॥ उसके वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य अनन्तगुणी अधिक होती है | जस्स वेयणीयवेयणा भावदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। १३९ ॥ जहण्णा वा अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा पंचद्वाणपदिदा ॥ १४० ॥
जिस जीवके वेदनीयकी अपेक्षा भावकी अपेक्षा जघन्य होती हैं उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! ॥ १३९ ॥ उसके वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य अनन्तभाग अधिक आदि पांच स्थानोंमें पतित होती है ॥ १४० ॥
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