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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, १३, १०२
जस्स णाणावरणीयवेयणा खेत्तदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। १०२ ।। णियमा अजहण्णा चउड्डाणपदिदा - असंखेज्जभागब्भहिया वा संखेज्जभागभहिया वा संखेज्जगुणन्भहिया असंखेज्जगुणन्भहिया वा ॥ १०३ ॥
जिसके ज्ञानावरणीय की वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ १०२ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य होती हुई असंख्यातभाग अधिक, संख्यातभाग अधिक संख्यातगुण अधिक और असंख्यातगुण अधिक इन चार स्थानोंमें पतित होती है ॥ १०३ ॥
स कालदो किं जहण्णा [ अजहण्णा ] | ॥ १०४ ॥ णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुण भहिया || १०५ ।।
उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या [ अजघन्य ] : ॥ १०४ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है ।। १०५ ॥
तस्स भावदो किं जहण्णा अण्णा ? ।। १०६ ।। णियमा अजहण्णा अणंतगुणभहिया ।। १०७ ॥
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य : ॥ १०६ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और अनन्तगुणी अधिक होती है ।। १०७ ।।
जस्स णाणावरणीयवेयणा कालदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥ १०८ ॥ जहण्णा वा अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा पंचट्ठाणपदिदा - अनंतभागब्भहिया वा असंखेज्जभागब्भहिया वा संखेज्जब्भागवहिया वा संखेज्जगुणन्भहिया वा असंखेज्जगुण भहिया वा ।। १०९ ।।
जिस जीवके ज्ञानावरणीयकी वेदना कालकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके वह द्रव्यकी अपेक्षा क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ १०८ ॥ उसके वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य अनन्तभाग अधिक, असंख्यातभाग अधिक, संख्यात भाग अधिक, संख्यातगुण अधिक और असंख्यातगुण अधिक; इन पांच स्थानों में पतित है ॥ १०९ ॥ तस्स खेतो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। ११० ।। णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणा ॥ १११ ॥
उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य : ॥ ११० ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १११ ॥
तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। ११२ ।। जहण्णा ।। ११३ ।। उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य : ॥ ११२ ॥ उसके उक्त वेदना जघन्य होती है ॥ ११३ ॥
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