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४, २, १३, १२८]
वेयणमहाहियारे वेयणसण्णियासविहाणाणियोगद्दारं
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__ जस्स णाणावरणीयवेयणा भावदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥११४ ॥ जहण्णा वा अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा पंचट्ठाणपदिदा ॥११५ ॥
जिसके ज्ञानावरणीयकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ ११४ ॥ वह उसके जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य पांच स्थानोंमें पतित होती है ॥ ११५ ॥
___ तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥ ११६ ॥ णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणब्भहिया ॥ ११७ ॥
उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ ११६ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ ११७ ॥
तस्स कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥ ११८ ॥ जहण्णा ॥ ११९ ॥
उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ ११८ ॥ वह उसके जघन्य होती है ॥ ११९ ॥
एवं दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं ॥ १२० ॥
इसी प्रकार दर्शनावरणीय मोहनीय और अन्तराय कर्मोकी जघन्य वेदनासम्बन्धी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥ १२० ॥
जस्स वेयणीयवेयणा दव्वदो जहण्णा तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥ १२१ ॥ णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुणब्भहिया ॥ १२२ ॥
जिसके वेदनीय कर्मकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके वह क्या क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ १२१ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १२२ ॥
तस्स कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥ १२३ ॥ जहण्णा ॥१२४ ॥
उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ १२३ ॥ उसके वह जघन्य होती है ॥ १२४ ।।
तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥ १२५ ॥ जहण्णा वा अजहण्णा वा, जहण्णादो अजहण्णा अणंतगुणब्भहिया ॥१२६ ॥
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ १२५ ॥ उसके वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी। जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य अनन्तगुणी अधिक है ॥१२६॥
जस्स वेयणीयवेयणा खेत्तदो जहण्णा तस्स दव्वदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥१२७ ॥ णियमा अजहण्णा चउट्ठाणपदिदा ॥ १२८ ॥
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