________________
४, २, १३, १०१ ]
वेयणमहाहियारे वेयणसण्णियासविहाणाणियोगद्दारं
[ ६६१
जिस जीवके आयुकी वेदना भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है उसके द्रव्यकी अपेक्षा ह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ? ॥ ८९ ॥ उसके वह नियमसे अनुत्कृष्ट होती हुई संख्यातभागहीन, संख्यातगुणहीन और असंख्यातगुणहीन इन तीन स्थानोंमें पतित होती है ॥ ९० ॥
तस्स खेत्तदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ।। ९९ ।। णियमा अणुक्कस्सा असंखेज्जगुणा ।। ९२ ।।
उसके क्षेत्रकी अपेक्षा उक्त वेदना क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ॥ ९१ ॥ ह उसके नियमसे अनुत्कृष्ट और असंख्यातगुणी हीन होती है ॥ ९२ ॥
तस्स कालदो किमुक्कस्सा अणुक्कस्सा ? ।। ९३ ।। चउट्ठाणपदिदा - असंखेज्जभागहीणा वा संखेज्जभागहीणा वा असंखेज्जगुणहीणा ॥ ९४ ॥
उसके कालकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है या अनुत्कृष्ट ! ॥ ९३ ॥ उसके वह नियमसे अनुत्कृष्ट होती हुई असंख्यात भागहीन, संख्यात भागहीन, संख्यातगुणहीन और असंख्यात - गुणहीन इन चार स्थानोंमें पतित होती है ॥ ९४ ॥
णियमा अणुक्कस्सा संखेज्जगुणहीणा वा
जो सो थप्पो जहण्णओ सत्थाणवेयणसण्णियासो सो चउव्विहो- दव्वदो खेत्तदो कालदो भावदो चेदि ।। ९५ ।।
जिस जघन्य स्वस्थानवेदनासंनिकर्षको स्थगित किया था वह द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके भेदसे चार प्रकारका है || ९५ ॥
जस्स णाणावरणीयवेयणा दव्वदो जहण्णा तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ॥ ९६ ॥ णियमा अजणा असंखेज्जगुणन्भहिया ॥ ९७ ॥
जिस जीवके ज्ञानावरणीयकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य होती है उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ? ॥ ९६ ॥ उसके वह नियमसे अजघन्य और असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ ९७ ॥
स कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। ९८ ।। जहण्णा ।। ९९ ॥ उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! ॥ ९८ ॥ वह उसके जघन्य होती है ॥ ९९॥
तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ? ।। १०० ।। जहण्णा ॥ १०१ ॥
उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ! ॥ १०० ॥ वह उसके जघन्य होती है ॥ १०१ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org