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छक्खंडागमे वेयणाखंड
सव्वं पि कम्मं पयडि त्ति कट्टु णेगमणयस्स ॥ २ ॥
नैगम नयकी अपेक्षा सभी कर्मको प्रकृति मानकर यह प्ररूपणा की जा रही है ॥ २ ॥
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जो पर्याय भविष्य में उत्पन्न होनेवाली है उसका वर्तमानमें संकल्प करके ग्रहण करनेका नाम नैगम नय है । जो अज्ञानादिको उत्पन्न करती है वह प्रकृति कहलाती है । उक्त नैगम नयकी अपेक्षा बद्ध, उदीर्ण और उपशान्त स्वरूपसे स्थित सभी कर्म प्रकृतिरूप है । जो पुद्गलस्कन्ध फलदान स्वरूपसे परिणत है वह उदीर्ण कहलाता है । मिथ्यात्व और अविरति आदि परिणामोंके द्वारा जो पुद्गलस्कन्ध कर्मरूपताको प्राप्त हो रहा है वह बध्यमान कहा जाता है । तथा जो पुद्गलस्कन्ध उक्त दोनों अवस्थाओंसे भिन्न है वह उपशान्त कहा जाता है ।
णाणावरणीयवेणा सिया बज्झमाणिया वेयणा ॥ ३ ॥
ज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् बध्यमान वेदना है ॥ ३ ॥
कोई भी कर्म बन्धकालमें अपना फल नहीं दिया करता है, इसलिये इस अपेक्षासे यद्यपि बध्यमान कर्मको वेदना नहीं कहा जा सकता हैं; फिर भी चूंकि वह उत्तर कालमें फल देनेवाला है, अतएव यहां ज्ञानावरणीयकी वेदनाको बध्यमान वेदना कहा गया हैं ।
सिया उदिण्णा वेयणा ॥ ४ ॥
ज्ञानावरणीयकी वेदना कथंचित् उदीर्ण वेदना है ॥ ४ ॥
सिया उवसंता वेदा ॥ ५ ॥
ज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् उपशान्त वेदना है ॥ ५ ॥ सिया बज्झमाणियाओ वेयणाओ || ६ ||
ज्ञानावरणीयकी वेदनायें कथंचित् बध्यमान वेदनायें हैं ॥ ६ ॥ सिया उदिष्णाओ वेयणाओ ॥ ७ ॥
ज्ञानावरणीयकी वेदनायें कथंचित् उदीर्ण वेदनायें हैं ॥ ७ ॥ सिया उवसंताओ वेयणाओ ॥ ८ ॥
कथंचित् उपशान्त वेदनायें हैं ॥ ८ ॥
सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च ॥ ९ ॥
वह कथंचित् बध्यमान और उदीर्ण वेदना है ॥ ९ ॥
[ ४, २, १०, २
सिया बज्झमाणियाओ च उदिष्णाओ च ॥ १० ॥
वह कथंचित् बध्यमान एक वेदना और उदीर्ण अनेक वेदनास्वरूप है ॥ १० ॥
सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णा च ॥ ११ ॥
वह कथंचित् बध्यमान अनेक वेदनवेदनाओं रूप और उदीर्ण एक वेदना है ॥ ११ ॥
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