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४, २, ११, ११] वेयणमहाहियारे वेयणगदिविहाणं
[ ६५१ अभिप्राय यह है कि राग-द्वेष, भय व वेदना आदिके कारण जीवप्रदेशोंके चंचल होनेपर उनमें समवायको प्राप्त कर्मप्रदेश भी चूंकि चंचलताको प्राप्त होते हैं, कारण यहां उक्त नयोंकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी वेदना कथंचित् अस्थित कही गई है ।
सिया द्विदाविदा ॥३॥ उक्त वेदना कथंचित् स्थित-अस्थित है ॥ ३ ॥
जो छद्मस्थ जीव व्याधि व वेदनाके उपस्थित होनेपर भी उनसे संक्लेशको नहीं प्राप्त होते हैं उनके कितने ही जीवप्रदेशोंमें चंचलता नहीं होती है, इसीलिये उनमें समवायको प्राप्त कर्मप्रदेश भी चंचलतासे रहित (स्थित) होते हैं । तथा वहींपर चूंकि कुछ जीवप्रदेशोंमें चंचलता भी पायी जाती है, अत एव उनमें समवेत कर्मप्रदेश भी चंचलता (अस्थितता) को प्राप्त होते हैं। इसी अपेक्षासे यहां ज्ञानावरणीयकी वेदना कथंचित् स्थित-अस्थित कही गई है।
एवं दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं ॥४॥ इसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्मोके विषयमें जानना चाहिये ॥४॥ वेयणीयवेयणा सिया द्विदा ॥५॥ वेदनीय कर्मकी वेदना कथंचित् स्थित है ॥ ५॥
चूंकि योगसे रहित हुए अयोगकेवलीके जीवप्रदेशोंमें चंचलता नहीं पायी जाती है, अत एव उनमें समवेत कर्मप्रदेश भी चंचलतासे रहित होते हैं। इसी अपेक्षासे यहां वेदनीयकी वेदना कथंचित् स्थित कही गई है।
सिया अद्विदा ॥६॥ कथंचित् वह अस्थित है ॥ ६॥ सिया द्विदाद्विदा ॥ ७॥ कथंचित् वह स्थित-अस्थित है ॥ ७ ॥ एवमाउव-णामा-गोदाणं ॥ ८॥ इसी प्रकार आयु, नाम और गोत्र कर्मोकी वेदनाके सम्बन्धमें जानना चाहिये ॥ ८ ॥ उजुसुदस्स णाणावरणीयवेयणा सिया द्विदा ॥९॥ ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी वेदना कथंचित् स्थित है ॥ ९॥ सिया अद्विदा ॥१०॥ कथंचित् वह अस्थित है ॥ १० ॥ एवं सत्तणं कम्माणं ॥ ११ ॥ इसी प्रकार ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा सात कर्मों के विषयमें जानना चाहिये ॥ ११ ॥
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