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छक्खंडागमे वेयणाखंड
सिया उदिण्णा च उवसंता च ॥ ५३ ॥ कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदना है ॥ ५३ ॥
सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंता च ॥ ५४ ॥
कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदना है ॥ ५४ ॥
एवं सत्तण्णं कम्माणं ।। ५५ ।।
इसी प्रकार संग्रहनयकी अपेक्षासे शेष सात कर्मोंके सम्बन्धमें भी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥ ५५ ॥
उजुसुदस्स णाणावरणीयवेयणा उदिण्णफलपत्तविवागावेयणा ।। ५६ ।।
ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीय कर्मकी वेदना उदीर्ण के फलको प्राप्तविपाकवाली वेदना है ॥ ५६ ॥
ऋजुसूत्रनयका विषय वर्तमान पर्याय है । अतएव उसकी अपेक्षा जो कर्मबन्ध जिस समयमें अज्ञानको उत्पन्न करता है उसी समय में ज्ञानावरणीयकी वेदना होती है । इसके अनन्तर समयमें ज्ञानावरणीयवेदना सम्भव नहीं है, क्यों कि, उस समय ज्ञानावरणरूपसे परिणत पुद्गलस्कन्धकी कर्म पर्याय नष्ट हो जाती है। इसी प्रकार अज्ञान उत्पन्न करनेके पूर्व समयमें भी उक्त ज्ञानावरणीयवेदना सम्भव नहीं है, कर्मोंकि उस समय उसके अज्ञानके उत्पादनरूप शक्ति नहीं है । एवं सत्तणं कम्माणं ॥ ५७ ॥
इसी प्रकार ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा शेष सात कर्मोंके सम्बधमें भी प्ररूपणा करनी चाहिये ॥
सद्दणस्स अवत्तव्वं ॥ ५८ ॥
शब्दनयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयवेदना अवक्तव्य है ॥ ५८ ॥
॥ वेदनवेदनविधान अनुयोगद्वार समाप्त हुआ || १० ॥
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११. वेयणगदिविहाणं
वेणदिविहाणे ति ॥ १ ॥
'वेदनागतिविधान' अनुयोगद्वार अधिकारप्राप्त है ॥ १ ॥
[ ४, २, १०, ५३
गम-वहार-संगहाणं णाणावरणीयवेयणा सिया अवट्टिदा ॥ २ ॥
नैगम, व्यवहार और संग्रह नयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी वेदना कथंचित् अवस्थित है |
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