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यणमहाहियारे वेयणपञ्चविहाणं
कंदयस्स उवरिं जीवा विसेसाहिया ।। ३१३ ॥
उनसे काण्डकके ऊपर जीव विशेष अधिक हैं ॥ ३१३ ॥ सव्वेसु ट्ठाणेसु जीवा विसेसाहिया ।। ३१४ ॥ उनसे सब स्थानोमें जीव विशेष अधिक हैं ॥ ३२४ ॥
॥ तृतीय चूलिका समाप्त हुई || ७ ||
४, २, ८, ६ ]
८. वेयणपच्चयविहाणं
वेणपच्चयविहाणे ति ॥ १ ॥
अब वेदनाप्रत्ययविधान अनियोगद्वार अधिकार प्राप्त है ॥ १ ॥
प्रत्यय से अभिप्राय कारणका है । इस अनुयोगद्वारमें चूंकि ज्ञानावरणादि कर्मों के कारण की प्ररूपणा की गई है, अतएव इस अनुयोगद्वारका नाम 'वेदन प्रत्यय विधान' निर्दिष्ट किया गया है । गम-वहार-संगहाणं णाणावरणीयवेयणा पाणादिवादपच्चए || २ ||
नैगम, व्यवहार और संग्रह नयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयवेदना प्राणातिपात प्रत्यय से होती है ॥ २ ॥
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प्राणियोंके प्राणोंका जो विनाश किया जाता है उसका नाम प्राणातिपात है । साथ ही वह जिस मन वचन और कायके व्यापारादिसे किया जाता है उस व्यापारको भी प्राणातिपातके अन्तर्गत जानना चाहिये । इस प्राणातिपात प्रत्ययके द्वारा ज्ञानावरणकी वेदना होती है। पांच इन्द्रियां, मन, वचन, काय ये तीन बल तथा उच्छवास - निश्वास व आयु ये दस प्राण माने जातें हैं ।
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मुसावादपच्चए || ३ ॥
मृषावाद (असत्य वचन ) प्रत्ययसे ज्ञानावरणीयवेदना होती है ॥ ३ ॥
अदत्तादाणपच्चए ॥ ४ ॥
अदत्तादान प्रत्ययसे ज्ञानावरणीयवेदना होती है ॥ ४ ॥
विना दी हुई वस्तुको ग्रहण और तद्विषयक परिणामको यहां अदत्तादान समझना चाहिये ।
मेहुणपच्च ।। ५ ।।
मैथुन प्रत्यय से ज्ञानावरणीयवेदना होती है ॥ ५ ॥
परिग्गहपच्चए || ६ ॥
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