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४, २, ७, २७५]
चेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे तदि
३. वेयणभावविहाणे तदिया चूलिया जीवसमुदाहारे ति तत्थ इमाणि अट्ठ अणियोगद्दाराणि-एयट्ठाणजीवपमाणाणुगमो णिरंतणट्ठाणजीवपमाणाणुगमो सांतरट्ठाणजीवपमाणणुगमो णाणाजीवकालपमाणाणुगमो वड्ढिपरूवणा जवमज्झपरूवणा फोसणपरूवणा अप्पावहुए त्ति ॥ २६८ ॥
जीवसमुदाहार इस अधिकारमें ये आठ अनुयोगद्वार हैं- एकस्थानजीवप्रमाणानुगम, निरन्तरस्थान जीवप्रमाणानुगम सान्तरस्थान-जीवप्रमाणानुगम, नानाजीवकालप्रमाणानुगम, वृद्धिप्ररूपणा, यवमध्यप्ररूपणा, स्पर्शनप्ररूपणा और अल्पबहुत्व ॥ २६८ ॥
एयट्ठाण जीवपमाणाणुगमेण एकेक्कम्हि ट्ठाणम्हि जीवा जदि होंति एक्को वा दो वा तिण्णि वा जाव उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो ॥ २६९ ॥
एकस्थानजीवप्रमाणानुगमसे एक एक स्थानमें जीव यदि होते हैं तो वे एक, दो, तीन अथवा उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग तक होते हैं ॥ २६९ ।।
णिरंतरट्ठाणजीवपमाणाणुगमेण जीवेहि अविरहिदट्ठाणाणि एक्को वा दो वा तिण्णि वा उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो ॥ २७० ॥
निरन्तरस्थान-जीवप्रमाणानुगमसे जीवोंसे सहित स्थान एक, अथवा दो, अथवा तीन, इस प्रकार उत्कर्षसे वे आवलीके असंख्यातवें भाग तक होते हैं ॥ २७० ॥
सांतरट्ठाण जीवपमाणाणुगमेण जीवेहि विरहिदाणि हाणाणि एक्को वा दो वा तिण्णि वा उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ॥ २७१ ॥
सान्तरस्थान-जीवप्रमाणानुगमसे जीवोंसे रहित स्थान एक, अथवा दो, अथवा तीन, इस प्रकार उत्कर्षसे वे असंख्यात लोक प्रमाण होते हैं ॥ २७१ ॥
णाणाजीवकालपमाणाणुगमेण एकेकम्हि हाणम्मि णाणा जीवा केवचिरं कालादो होंदि १ ॥ २७२ ॥
नानाजीव-कालप्रमाणानुगमसे एक एक स्थानमें नाना जीवोंका कितना काल है ? ॥ जहण्णण एगसमओ ॥ २७३ ॥ उनका जघन्य काल एक समय है ॥ २७३ ॥ उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो ॥ २७४ ॥ उत्कृष्ट काल उनका आवलीके असंख्यातवें भाग है ॥ २७४ ॥
वढिपरूवणदाए तत्थ इमाणि दुवे अणियोगद्दाराणि अणंतरोवणिधा परंपरोयणिधा ॥ २७५ ॥
वृद्धिप्ररूपणा अधिकारमें ये दो अनुयोगद्वार हैं, अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा ॥
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