________________
६३२ ]
छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[४, २, ७, २१४
सव्वजीवेहि अणंतगुणपरिवड्ढी, एवदिया परिवड्ढी ॥ २१४ ॥ अनन्तगुणवृद्धि सब जीवोंसे वृद्धिंगत होती है, इतनी वृद्धि होती है ।। २१४ ॥ हेट्ठाटाणपरूवणाए अणंतभागब्भहियं कंदयं गंतूण असंखेज्जभागब्भहियं हाणं ।।
अधस्तनस्थानप्ररूपणामें अनन्तवें भागसे अधिक काण्डक प्रमाण जाकर असंख्यातवें भागसे अधिक स्थान होता है ॥ २१५ ॥
असंखेज्जभागब्भहियं कंदयं गंतूण संखेज्जभागन्भहियं ठाणं ॥ २१६ ॥ असंख्यातवें भागसे अधिक काण्डक जाकर संख्यातवें भागसे अधिक स्थान होता है । संखेज्जभागब्भहियं कंदयं गंतूण संखेज्जगुणब्भहियं द्वाणं ॥२१७ ॥ संख्यातवें भागसे अधिक काण्डक जाकर संख्यातगुणा अधिकस्थान होता है ॥२१७ ॥ संखेज्जभागुणब्भहियं कंदयं गंतूण असंखेज्जगुणब्भाहियं ठाणं ॥ २१८ ॥ संख्यातगुणा अधिक काण्डक जाकर असंख्यातगुणा अधिक स्थान होता है ।। २१८ ॥ असंखेज्जगुणब्भहियं कंदयं गंतूण अणंतगुणब्भहियं द्वाणं ॥ २१९ ॥ असंख्यातगुणा अधिक काण्डक जाकर अनन्तगुणा रथान उत्पन्न होता है ॥ २१९ ॥ अणंतभागब्भहियाणं कंदयवग्गं कंदयं च गंतूण संखेज्जभागन्भहिट्ठाणं ॥२२०॥
अनन्तभाग अधिक अर्थात् अनन्तभागवृद्धियोंके काण्डकका वर्ग और एक काण्डक जाकर संख्यातभागवृद्धिका स्थान होता है ॥ २२० ॥
असंखेज्जभागभहियाणं कंदयवग्गं कंदयं च गंतूण संखेज्जगुणब्भहियट्ठाणं ॥
असंख्यातभागवृद्धियोंका काण्डकवर्ग व एक काण्डक जाकर संख्यातगुणवृद्धिका स्थान होता है ॥ २२१ ॥
संखेज्जभागभहियाणं कंदयवग्गं कंदयं च गंतूण असंखेज्जगुणब्भहियट्ठाणं ॥
संख्यातभागवृद्धियोंका काण्डकवर्ग और एक काण्डक जाकर (१६+४ ) असंख्यात गुणवृद्धिका स्थान होता है ॥ २२२ ॥
संखेज्जगुणब्भहियाणं कंदयवग्गं कंदयं च गंतूण अणंतगुणब्भहियं द्वाणं ॥२२३॥
संख्यातगुणवृद्धियोंका काण्डकवर्ग और एक काण्डक (१६+४) जाकर अनन्तगुणवृद्धिका स्थान होता है ॥ २२३ ॥
संखेज्जगुणस्स हेट्ठदो अणंतभागभहियाणं कंदयघणो बेकंदयवग्गा कंदयं च ॥
संख्यातगुण वृद्धिके नीचे अनन्तभागवृद्धियोंका काण्डकघन दो काण्डकवर्ग और एक काण्डक होता है ॥ २२४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org