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६३०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ७, १९९ अविभागपडिच्छेदपरूवणदाए एक्के कम्हि द्वाणम्हि केवडिया अविभागपडिच्छेदा ? अणंता अविभागपडिच्छेदा सव्वजीवेहि अणंतगुणा, एवदिया अविभागपडिच्छेदा ॥ १९९ ॥
अविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणाके आश्रयसे एक एक स्थानमें कितने अविभागप्रतिच्छेद होते हैं ? अनन्त अविभागप्रतिच्छेद होते हैं, जो सब जीवोंसे अनन्तगुणे होते हैं। इतने अविभागप्रतिच्छेद एक एक स्थानमें होते हैं ॥ १९९ ॥
जघन्य अनुभागस्थानसम्बन्धी सब परमाणुओंके समूहको एकत्रित करके उनमें जो सबसे मन्द अनुभागवाला परमाणु हो उसके वर्ण, गन्ध और रसको छोड़कर केवल स्पर्शके बुद्धिसे तब तक खण्ड करना चाहिये जब तक कि उसका खण्ड हो सकता हो। इस प्रकारसे जो अन्तिम खण्ड उपलब्ध हो उसका नाम अविभागप्रतिच्छेद है । इस अन्तिम खण्डके प्रमाणसे सभी स्पर्शखण्डोंके खण्डित करनेपर एक अनुभागस्थानमें सब जीवोंकी अपेक्षा अनन्तगुणे अविभागप्रतिच्छेद प्राप्त होते हैं । इन सब खण्डोंकी पृथक् पृथक् ‘वर्ग' यह संज्ञा है ।।
ठाणपरूवणदाए केवडियाणि हाणाणि ? असंखेज्जलोगट्ठाणाणि । एवदियाणि ट्ठाणाणि ॥ २०० ॥
स्थानप्ररूपणामें स्थान कितने हैं ? असंख्यात लोक प्रमाण इतने स्थान हैं ॥ २०० ॥
अंतरपरूवणदाए एकेकस्स हाणस्स केवडियमंतरं ? सव्वजीवेहि अणंतगुणं एवडियमंतरं ॥ २०१॥
अन्तरप्ररूपणामें एक एक स्थानका अन्तर कितना है ? सब जीवोंस अनन्तगुणा इतना अन्तर है ॥ २०१॥
कंदयपरूवणदाए अत्थि अणंतभागपरिवढिकंदयं असंखेज्जभागपरिवढिकंदयं संखेज्जभागपरिवढिकंदयं संखेज्जगुणपरिवढिकंदयं असंखेज्जगुणपरिवढिकंदयं अणंतगुणपरिवढिकंदयं ॥ २०२॥
काण्डकप्ररूपणामें अनन्तभागवृद्धिकाण्डक, असंख्यातभागवृद्धिकाण्डक, संख्यातभागवृद्धिकाण्डक, संख्यातगुणवृद्धिकाण्डक, असंख्यातगुणवृद्धिकाण्डक, और अनन्तगुणवृद्धिकाण्डक है ॥२०२।।
ओजजुम्मपरूवणदाए अविभागपडिच्छेदाणि कदजुम्माणि, हाणाणि कदजुम्माणि, कंदयाणि कदजुम्माणि ॥ २०३ ॥
ओजयुग्मप्ररूपणामें अविभागप्रतिच्छेद कृतयुग्म हैं, स्थान कुतयुग्म हैं, और काण्डक कृतयुग्म हैं ॥ २०३ ॥
___ ओजराशि दो प्रकारकी होती हैं- कलिओज, और तेजोज । जिस राशिमें चारका भाग देने पर एक अंक शेष रहता है वह कलिओजराशि कहलाती है। जैसे १३ (१३+४=३ शेष १) जिस राशिमें चार का भाग देनेपर तीन अंक शेष रहते हैं उसे तेजोज कहते हैं। जैसे १५
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