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६१८] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[४, २, ७, ३८ अण्णदरेण बादरतेउ-चाउजीवेण सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदेण सागार-जागार सबविसुद्धेण-हदसमुप्पत्तियकम्मेण उच्चागोदमुव्वेल्लिदूण णीचागोदं बद्धल्लयं जस्स तं संतकम्ममत्थि तस्स गोदवेयणा भावदो जहण्णा ॥ ३८॥
___ सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुए, साकार उपयोगसे संयुक्त, जागृत, सर्वविशुद्ध ऐसे हतसमुत्पत्तिक कर्मवाले जिस अन्यतर बादर तेजकायिक या वायुकायिक जीवने उच्च गोत्रकी उद्वेलना करके नीच गोत्रका बन्ध किया है व जिसके उसका सत्त्व है उसके गोत्रकी वेदना भावकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ ३८ ॥
तव्यदिरित्तमजहण्णा ॥ ३९ ॥ उपर्युक्त गोत्रकी जघन्य वेदनासे भिन्न उसकी अजघन्य वेदना होती है ।। ३९ ।।
स्वामित्त्व समाप्त हुआ। अप्पाबहुए त्ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगद्दाराणि - जहण्णपदे उक्कस्सपदे जहण्णुक्कस्सपदे ॥ ४० ॥
अब अल्पबहुत्त्वका प्रकरण है। उसमें ये तीन अनुयोगद्धार हैं- जघन्य पद विषयक अल्पबहुत्त्व, उत्कृष्ट पदविषयक अल्पबहुत्त्व और जघन्य-उत्कृष्ट पदविषयक अल्पबहुत्त्व ॥ ४० ॥
सव्वत्थोवा मोहणीयवेयणा भावदो जहणिया ॥४१॥ भावकी अपेक्षा मोहनीयकी जघन्य वेदना सबसे स्तोक है ॥ ४१ ॥ अंतराइयवेयणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥ ४२ ॥ उससे भावकी अपेक्षा अन्तराय कर्मकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ॥ ४२ ॥
णाणावरणीय-दंसणावरणीयवेयणाओ भावदो जहणियाओ दो वि तुल्लाओ अणंतगुणाओ ॥४३॥
उससे भावकी अपेक्षा ज्ञानावरणीय व दर्शनावरणीयकी जघन्य वेदनायें दोनों ही परस्पर तुल्य होती हुई अनन्तगुणी हैं ॥ ४३ ॥
आउववेदणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥४४॥ उनसे भावकी अपेक्षा आयु कर्मकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ॥ ४४ ॥ गोदवेयणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥ ४५ ॥ उससे भावकी अपेक्षा गोत्र कर्मकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ॥ ४५ ॥ णामवेयणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥ ४६॥ उससे भावकी अपेक्षा नाम कर्मकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ॥ ४६ ॥
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