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वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे अप्पाबहुअं
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चार प्रत्याख्यानावरण और चार अप्रत्याख्यानावरण ये आठ कषाय, आभिनिबोधिकज्ञानावरण और परिभोगान्तराय ये दो, चक्षुदर्शनावरण, तीन त्रिक अर्थात् श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण और भोगान्तराय ये तीन प्रकृतियां, अवधिज्ञानावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और लाभान्तराय ये तीन प्रकृतियां, मनःपर्यायज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धि और दानान्तराय ये तीन प्रकृतियां, अर्थात् नपुंसक वेद, अरति, शोक, भय, और जुगुप्सा ये पांच नोकषाय निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, निद्रा और प्रचला; ये प्रकृतियां क्रमशः उत्तरोत्तर अनन्तगुणी हीन हैं ॥ २ ॥
अजसो णीचागोदं णिरय-तिरिक्खगइ इत्थि पुरिसोय । रदि-हस्सं देवाऊ णिरयाऊ मणुय-तिरिक्खाऊ ॥३॥
अयशःकीर्ति और नीचगोत्र ये दो, नरकगति, तिर्यग्गति, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, रति, हास्य, देवायु, नारकायु, मनुष्यायु और तिर्यग्गायु ये प्रकृतियां अनुभागकी अपेक्षा उत्तरोत्तर अनन्तगुणी हीन हैं ॥३॥
एत्तो उक्कस्सओ चउसद्विपदियो महादंडओ कायव्वो भवदि ॥६५॥ अब आगे चौंसठ पदवाला उत्कृष्ट महादण्डक किया जाता है । ६५ ।। सव्यतिव्वाणुभागं सादावेदणीयं ।। ६६ ॥ सातावेदनीय प्रकृति सबसे तीव्र अनुभागवाली संयुक्त है ॥ ६६ ॥ जसगित्ती उच्चागोदं च दो वि तुल्लाणि अणंतगुणहीणाणि ॥ ६७॥ उससे यशःकीर्ति और उच्चगोत्र ये दोनों भी परस्पर तुल्य होती हुई अनन्तगुणी हीन है । देवगदी अणंतगुणहीणा ॥ ६८॥ उनसे देवगति अनन्तगुणी हीन है ॥ ६८ ॥
कम्मइयसरीरमणतगुणहीणं ॥ ६९ ॥ तेयासरीरमणंतगुणहीणं ॥ ७० ॥ आहारसरीरमणतगुणहीणं ॥ ७१ ॥ उब्वियसरीरमणतगुणहीणं ॥ ७२ ॥
___ उससे कार्मणशरीर अनन्तगुणा हीन है ॥ ६९ ॥ उससे तैजसशरीर अनन्तगुणा हीन है ॥ ७० ॥ उससे आहारकशरीर अनन्तगुणा हीन है ॥ ७१ ॥ उससे वैक्रियिकशरीर अनन्तगुणा हीन है ॥ ७२ ॥
मणुसगदी अणंतगुणहीणा ॥७३ ॥ ओरालियसरीरमणंतगुणहीणं ॥७४ ॥ मिच्छत्तमणंतगुणहीणं ॥ ७५ ॥
उससे मनुष्यगति अनन्तगुणी हीन है ॥ ७३ ॥ उससे औदारिकशरीर अनन्तगुण हीन है ॥ ७४ ॥ उससे मिथ्यात्त्व प्रकृति अनन्तगुणी हीन है ॥ ७५ ॥ ।
केवलणाणावरणीयं केवलदसणावरणीयं असादवेदणीयं वीरियंतराइयं च चत्तारि वि तुल्लाणि अणंतगुणहीणाणी ॥ ७६ ॥
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