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६२०] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[४, २, ७, ५८ णामवेयणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥ ५८ ॥ उससे भावकी अपेक्षा नाम कर्मकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ॥ ५८ ॥ वेयणीयवेयणा भावदो जहणिया अणंतगुणा ॥ ५९॥ उससे भावकी अपेक्षा वेदनीयकी जघन्य वेदना अनन्तगुणी है ॥ ५९ ॥ आउअवेयणा भावदो उक्कस्सिया अणंतगुणा ।। ६० ॥ उससे भावकी अपेक्षा आयुकी उत्कृष्ट वेदना अनन्तगुणी है ॥ ६० ॥
णाणावरणीय-दंसणावरणीय-अंतराइयवेयणाओ भावदो उक्कस्सियाओ तिण्णि वि तुल्लाओ अणंतगुणाओ ॥ ६१॥
उससे भावकी अपेक्षा ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तरायकी उत्कृष्ट वेदनायें तीनों ही तुल्य होती हुईं अनन्तगुणी हैं ॥ ६१ ॥
मोहणीयवेयणा भावदो उक्कस्सिया अणंतगुणा ।। ६२ ॥ उनसे भावकी अपेक्षा मोहनीयकी उत्कृष्ट वेदना अनन्तगुणी है ॥ ६२ ॥ णामा-गोदवेयणाओ भावदो उक्कस्सियाओ दो वि तुल्लाओ अणंतगुणाओ॥६३॥
उससे भावकी अपेक्षा नाम व गोत्रकी उत्कृष्ट वेदनायें दोनों ही तुल्य होती हुई अनन्तगुणी हैं ॥ ६३ ॥
वेयणीयवेयणा भावदो उक्कस्सिया अणंतगुणा ॥ ६४ ॥ उनसे भावकी अपेक्षा वेदनीयकी उत्कृष्ट वेदना अनन्तगुणी है ॥ ६४ ॥
॥ जघन्य-उत्कृष्ट अल्पबहुत्त्व समाप्त हुआ ।
सादं जसुच्च-दे-कं ते-आ-चे-मणु अणंतगुणहीणा । ओ-मिच्छ-के-असादं णीरिय-अणंताणु-संजलणा ॥१॥
सातावेदनीय, यशःकीर्ति व उच्चगोत्र ये दो प्रकृतियां, देवगति, कार्मणशरीर, तैजसशरीर, आहारकशरीर, वैक्रियिकशरीर, और मनुष्यगति ये प्रकृतियां उत्तरोत्तर अनन्तगुणी हीन हैं । औदारिकशरीर, मिथ्यात्व, केवलज्ञानावरण-केवलदर्शनावरण-असातावेदनीय व वीर्यान्तराय ये चार प्रकृतियां अनन्तानुबन्धिचतुष्टय और संज्वलनचतुष्टय ये प्रकृतियां उत्तरोत्तर अनन्तगुणी हीन है । ॥ १ ॥
अट्टाभिणि-परिभोगे चक्खू तिण्णि तिय पंचणोकसाया । णिहाणिद्दा पयलापयला णिद्दा य पयला य ॥२॥
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