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४, २, ७, ८
वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे पदमीमांसा
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पदमीमांसाए णाणावरणीयवेयणा भावदो किमुक्कस्सा किमणुक्कस्सा किं जहण्णा किमजहण्णा ? ॥३॥
पदमीमांसामें ज्ञानावरणीयवेदना मावकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट होती है, क्या अनुत्कृष्ट होती है, क्या जघन्य होती है, और क्या अजघन्य होती है ? ॥ ३ ॥
उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा जहण्णा वा अजहण्णा वा ॥४॥
उक्त ज्ञानावरणीयवेदना उत्कृष्ट भी होती है, अनुत्कृष्ट भी होती है, जघन्य भी होती है, और अजघन्य भी होती है ॥ ४ ॥
एवं सत्तणं कम्माणं ॥५॥ इसी प्रकार शेष सात कर्मोंके विषय प्ररूपणा जाननी चाहिये ॥ ५ ॥ सामित्तं दुविहं जहण्णपदे उक्कस्सपदे ॥ ६ ॥ स्वामित्व दो प्रकारका है- जघन्य पदविषयक और उत्कृष्ट पदविषयक ॥ ६ ॥ सामित्तण उक्कस्सपदे णाणावरणीयवेयण भावदो उक्कस्सिया कस्स ? ॥७॥ स्वामित्वकी अपेक्षा उत्कृष्ट पदमें भावसे ज्ञानावरणीयकी उत्कृष्ट वेदना किसके होती है ।
अण्णदरेण पंचिंदिएण सण्णिमिच्छाइट्टिणा सबाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तगदेण सागारूवजोगेण जागारेण णियमा उक्कस्ससंकिलिटेण बंधल्लयं जस्स तं संतकम्ममत्थि ॥८॥
अन्यतर पंचेन्द्रिय, संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त अवस्थाको प्राप्त, साकार उपयोगयुक्त, जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त ऐसे जिस जीवके द्वारा वह बांधा गया है और जिस जीवके उसका सत्त्व है उसके उक्त ज्ञानावरणीयकी वेदना भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है ॥ ८ ॥
इस सूत्रमें जो जीव उत्कृष्ट अनुभागको बांधता है उसके स्वरूपका दिग्दर्शन कहते हुए सर्व प्रथम यह कहा गया है कि वह संज्ञी पंचेन्द्रिय होना चाहिये । इससे यह सिद्ध हुआ कि असंज्ञी पंचेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और एकेन्द्रिय जीवोंके उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध सम्भव नहीं है। 'अन्यतर' शब्दके द्वारा यहां यह अभिप्राय व्यक्त किया गया है कि उक्त उत्कृष्ट अनुभागके बांधनेवाले उन संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंमें वेद आदिकी विशेषता अपेक्षित नहीं है- वह किसी भी वेद एवं विविध अवगाहना आदिसे संयुक्त संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवके हो सकता है। उक्त उत्कृष्ट अनुयोगबन्ध चूंकि अपर्याप्तकाल, दर्शनोपयोगकाल और सुप्त अवस्थामें सम्भव नहीं है; अत एव यहां सूत्रमें पर्याप्त, साकार उपयोग (ज्ञानोपयोग) युक्त और जागृत अवस्थाको सूचित करनेवाले 'पज्जत्त' आदि शब्दोंको ग्रहण किया गया है । उत्कृष्ट संक्लेशके द्वारा ही वह उत्कृष्ट बन्ध होता है, ऐसा कहनेसे यह सिद्ध हुआ कि वह मन्द, मन्दतर. मन्दतम, तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम इन छह संक्लेशस्थानोंमेंसे प्रारम्भके पांच संक्लेशस्थानोंमें नहीं होता है; किन्तु अन्तिम तीव्रतम संक्लेश
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