________________
४, २, ६, २७९ ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ट्ठिदिबंधज्झवसाणपरूवणा
[६११
एवं सत्तणं कम्माणं ॥ २७९ ॥
जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकी तीव्र-मन्दता सम्बन्धी अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार शेष सात कोके विषयमें भी उस तीव्र मन्दताके अल्पबहुत्त्वकी प्ररूपणा जानना चाहिये ।। २७९ ॥
॥ वेदना-काल-विधान समाप्त हुआ ॥ ६ ॥
-000-00
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org