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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ६, २६७
एयहिदिबंधज्झवसाणदुगुणवड्ढि-हाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणं ॥ २६७ ॥ एक स्थितिबन्धाध्यवसानदुगुणवृद्धिहानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ २६७ ॥ एवं छण्णं कम्माणमाउववज्जाणं ।। २६८॥ इसी प्रकार आयुको छोड़कर शेष छह कर्मोकी प्ररूपणा करना चाहिये ॥ २६८ ॥
अणुकट्ठीए णाणावरणीयस्स जहणियाए द्विदीए जाणि द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि ताणि बिदियाए द्विदीए बंधज्झवसाणट्ठाणाणि अपुव्वाणि ॥ २६९ ॥
अनुकृष्टिकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिमें जो स्थितिबन्धाध्यवसान स्थान हैं द्वितीय स्थितिमें वे बन्धाध्यवसानस्थान अपूर्व ही होते हैं ॥ २६९ ॥
एवमपुव्वाणि अपुवाणि जाव उक्कस्सिया द्विदि ति ॥ २७० ॥ इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति तक अपूर्व अपूर्व स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान होते गये हैं ॥ एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥ २७१ ॥
जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकी अनुकृष्टिकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार शेष सात कर्मोके विषयमें अनुकृष्टिकी प्ररूपणा जानना चाहिये ॥ २७१ ॥
तिव्व-मंददाए णाणावरणीयस्स जहणियाए द्विदीए जहण्णयं द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणं सव्वमंदाणुभागं ॥ २७२ ॥
तीव्र-मन्दताकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थिति सम्बन्धी जघन्य स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान सबसे मन्द अनुभागवाला है ॥ २७२ ।।
तिस्से चव उक्कस्समणंतगुणं ॥ २७३ ॥ उससे उसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान अनन्तगुणा है ।। २७३ ॥ बिदियाए द्विदीए जहण्णयं द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणमणंतगुणं ॥ २७४ ॥ उससे द्वितीय स्थितिका जघन्य स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान अनन्तगुणा है ॥ २७४ ॥ तिस्से चेव उक्कस्समणंतगुणं ॥ २७५ ॥ उससे उसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान अनन्तगुणा है ॥ २७५ ॥ तदियाए हिदीए जहण्णयं द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणमणंतगुणं ॥ २७६ ॥ उससे तृतीय स्थितिका जघन्य स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान स्थान अनन्तगुणा है ॥२७६॥ तिस्से चेव उक्कस्सयमणंतगुणं ॥ २७७ ॥ उससे उसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान अनन्तगुणा है ॥ २७७ ॥ एवमणंतगुणा जाव उक्कस्सद्विदि त्ति ॥ २७८ ॥ इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति तक वे अनन्तगुणे अनन्तगुणे हैं ॥ २७८ ॥
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