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६०८] , छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, २४६ ठिदिसमुदाहारे ति तत्थ इमाणि तिणि अणियोगद्दाराणि पगणणा अणुकट्ठी तिव्व-मंददा त्ति ॥ २४६ ॥
अब स्थिति समुदाहारका अधिकार है। उसमे ये तीन अनुयोगद्वार है- प्रगणना, अनुकृष्टि और तीव्र-मन्दता ॥ २४६ ॥
___ पगणणाए णाणावरणीयस्स जहणियाए द्विदिए द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि असंखेज्जा लोगा ।। २४७ ॥
प्रगणना अनुयोगद्वारका अधिकार है। तदनुसार ज्ञानावरणीयके जघन्य स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसान असंख्यात लोक प्रमाण हैं ।। २४७ ॥
विदियाए द्विदीए द्विदिबंधज्झवसागट्ठाणाणि असंखेज्जा लोगा ।। २४८ ॥ द्वितीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं ॥ २४८ ॥ तदियाए द्विदीए द्विदिबंधज्जवसाणट्ठाणाणि असंखेज्जालोगा ॥ २४९ ॥ तृतीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यात लोक प्रमाण है || २४९ ॥ एवमसंखेज्जा लोगा असंखेज्जा लोगा जाव उक्कस्सहिदि त्ति ।। २५० ॥
जिस प्रकार पूर्वोक्त तीन स्थितियोंके अध्यवसानस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं उसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति तक सब ही उपरिम स्थितियोंके अध्यवसानस्थान असंख्यात लोक प्रमाण ही हैं, ऐसा जानना चाहिये ॥ २५० ॥
एवं सत्तण्णं कम्माणं ।। २५१ ॥
जिस प्रकार ज्ञानावरण कर्मके प्रकृतिस्थिति-अध्यवसानस्थानोंकी प्ररूपणा की गई उसी प्रकार शेष सातों कर्मोके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंकी प्ररूपणा जानना चाहिये ।। २५१ ॥
तेसिं दुविधा सेडिपरूवणा अणंतरोवणिधा परंपरोवणिधा ॥ २५२ ॥ उक्त स्थानोंकी श्रेणिप्ररूपणा दो प्रकार है- अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा ॥२५२॥
अणंतरोवणिधाए णाणावरणीयस्स जहणियाए द्विदीए द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि थोवाणि ॥ २५३ ॥
अनन्तरोपनिधा की अपेक्षा ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिसम्बन्धी स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान स्तोक हैं ॥ २५३ ॥
विदियाए द्विदीए द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ॥ २५४ ॥ द्वितीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष अधिक हैं ॥ २५४ ॥ तदियाए द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।। २५५ ॥ तृतीय स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान विशेष हैं ॥ २५५ ॥
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