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छक्खंडागमे वेयणाखंड
ज - द्विदिबंध विसेसाहिओ ॥ २२३ ॥
उससे ज-स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।। २२३ ॥
जो उक्कस्यं दाहं गच्छदि सा ट्ठिदी संखेज्जगुणा ॥ २२४ ॥
उसमें जिसके कारण प्राणी उत्कृष्ट दाहको प्राप्त होता है वह स्थिति संख्यातगुणी है ॥ दाहका अर्थ संक्लेश है । अतः उत्कृष्ट दाहसे यहां उत्कृष्ट स्थितिबन्धके कारणभूत उत्कृष्ट संकेशको समझना चाहिये ।
अंतोकोडाकोडी संखेज्जगुणा ।। २२५ ॥
उससे अन्तःकोड़ाकोडिका प्रमाण संख्यातगुणा है || २२५ ॥
सादस्स बिट्ठाणियजवमज्झस्स उवरि एयंतसागारपाओग्गट्टाणाणि ।। २२६ ॥ उससे सातावेदनीयके द्विस्थानिक यवमध्यके ऊपरके एकान्तत साकार उपयोगके योग्य स्थान संख्यातगुणे हैं ॥ २२६ ॥
सादस्स उक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ २२७ ॥
उनसे सातावेदनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।। २२७ ॥
ज - द्विदिबंधो विसेसाहियो ॥ २२८ ॥
उससे ज-स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।। २२८ ॥
दाही विसेसाहिया ।। २२९ ।।
उससे दाहस्थिति विशेष अधिक है ।। २२९ ॥
[ ४, २, ६, २२३
असादस्स चउट्टाणियजवमज्झस्स उवरिमट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।। २३० ॥ उससे असातावेदनीयके चतुःस्थानिक यवमध्यके ऊपरके स्थान विशेष अधिक हैं | असादस्स उक्कस्स द्विदिबंधो विसेसाहिओ ।। २३१ ॥
उनसे असातावेदनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । २३१ ॥ ज-ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ २३२ ॥
उससे ज-स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।। २३२ ॥
एदेण अट्ठपदेण सव्वत्थोवा सादस्स चउट्ठाणबंधा जीवा ॥ २३३ ॥
इस-अर्थपदके आश्रयसे सातावेदनीयके चतुःस्थानबन्धक जीव सबसे स्तोक हैं ॥२३३॥
तिट्ठाणबंधा जीवा संखेज्जगुणा ॥ २३४ ॥
त्रिस्थान बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं ॥ २३४ ॥
बिट्ठाणबंधा जीवा संखेज्जगुणा ॥ २३५ ॥
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