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छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[४, २, ७, ९
स्थानमें ही होता है। इस प्रकारके जीवके द्वारा बांधा गया वह अनुभाग जिसके सत्त्वस्वरूपसे अवस्थित होता है उसके ज्ञानावरणीयकी वेदना भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है, यह सूत्रका अभिप्राय समझना चाहिये।
तं एइंदियस्स वा बीइंदियस्स वा तीइंदियस्स वा चउरिंदियस्स वा पंचिंदियस्स वा सण्णिस्स वा असण्णिस्स वा बादरस्स वा सुहुमस्स वा पज्जत्तस्स वा अपज्जत्तस्स वा अण्णदरस्स जीवस्स अण्णदवियाए गदीए वट्टमाणयस्स तस्स णाणावरणीयवेयणा भावदो उक्कस्सा ॥९॥
उक्त उत्कृष्ट अनुभागका सत्त्व एकेन्द्रिय, अथवा द्वीन्द्रिय, अथवा त्रीन्द्रिय, अथवा चतुरिन्द्रिय, अथवा पंचेन्द्रिय, अथवा संज्ञी, अथवा असंज्ञी, अथवा बादर, अथवा सूक्ष्म, अथवा पर्याप्त, अथवा अपर्याप्त, इस प्रकार किसी अन्यतर जीवके अन्यतम गतिमें विद्यमान होनेपर होता है; अतएव उक्त किसी भी जीवके ज्ञानावरणीयकी वेदना भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है ॥ ९ ॥
तव्यदिरित्तमणुक्कस्सा ॥ १० ॥ उससे भिन्न उसकी अनुत्कृष्ट भाववेदना होती है ॥ १० ॥ एवं सणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं ॥ ११ ॥
इसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तरायके सम्बन्धी भाववेदनाकी प्ररूपणा जाननी चाहिये ॥ ११ ॥
सामित्तेण उक्कस्सपदे वेयणीयवेयणा भावदो उक्कस्सिया कस्स ? ॥१२॥ स्वामित्वसे उत्कृष्ट पदमें वेदनीयवेदना भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट किसके होती है ? ॥ १२ ॥
अण्णदरेण खवगेण सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेण चरिमसमयबद्धल्लयं जस्स तं संतकम्ममथि ॥ १३ ॥
जिस अन्यतर सूक्ष्मसाम्परायिक शुद्धिसंयत क्षपकके द्वारा अन्तिम समयमें उसका अनुभाग बांधा गया है उसके तथा जिसके उसका सत्त्व है उसके वेदनीयकी वेदना भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है ॥ १३ ॥
__ उसका सत्त्व किनके होता है, इसका स्पष्टीकरण करनेके लिये यह आगेका सूत्र कहा जाता है--
तं खीणकसायवीदरागछदुमत्थस्स वा सजोगिकेवलिस्स वा तस्स वेयणीय वेयणा भावदो उक्कस्सा ॥ १४ ॥
उसका सत्त्व क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थके और सयोगिकेवलीके होता है, अतएव उनके वेदनीयकी वेदना भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है ॥ १४ ॥
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