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सिरि-भगवंत-पुप्फदंत-भूदबलि-पणीदो
छक्खंडागमो तस्स चउत्थेखंडे-वेयणाए
७. वेयणभावविहाणं वेयणभावविहाणे त्ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति ॥१॥
अब वेदनाभावविधान अनुयोगद्वार अधिकारप्राप्त है, उसमें ये तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं ॥ १ ॥
नामभाव, स्थापनाभाव, द्रव्यभाव और भाव भाव के भेदसे भाव चार प्रकारका है । उनमें 'भाव' यह शब्द नामभाव है। सद्भाव और असद्भाव स्वरूपसे 'वह भाव यह है' इस प्रकार अभेदस्वरूपसे जो अन्य पदार्थमें कल्पना की जाती है वह स्थापनाभाव कहलाता है। द्रव्यभाव आगमद्रव्यभाव और नोआगम द्रव्यभावके भेदसे दो प्रकारका है । उनमें जो भाव प्राभृतका ज्ञाता वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे रहित है उसका नाम आगम द्रव्यभाव है । नोआगम द्रव्यभाव ज्ञायक शरीर, भावी और तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यभावके भेदसे तीन प्रकारका है। इनमें भी तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्यभाव कर्मद्रव्यभाव और नोकर्म द्रव्यभावके भेदसे दो प्रकारका है। इनमें ज्ञानावरणादि द्रव्य कर्मोकी जो अज्ञानादिको उत्पन्न करनेकी शक्ति है उसे कर्मद्रव्यभाव कहते है। नोकर्म द्रव्यभाव सचित्त द्रव्यभाव और अचित्त द्रव्यभावके भेदसे दो प्रकारका है। उनमें केवलज्ञान और केवलदर्शनादि स्वरूप भावका नाम सचित्त द्रव्यभाव है। अचित्त द्रव्यभाव मूर्त द्रव्यभाव और अमूर्त द्रव्यभावके भेदसे दो प्रकारका है। उनमें वर्ण, गन्ध, रस, वे स्पर्शादिरूप भावका नाम मूर्त द्रव्यभाव तथा अवगाहना आदिस्वरूप भावका नाम अमूर्त द्रव्यभाव है। भावभाव आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। उनमें जो भावनाभृतका ज्ञाता होकर वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे सहित है उसे आगम भावभाव कहते हैं। नोआगम भावभाव तीव्र-मन्दभाव व निर्जराभावके भेदसे दो प्रकारका है। इन सब भावके भेद-प्रभेदोंमें यहां कर्मभावका अधिकार है । वेदनाका जो भाव है- वह वेदना भाव है। उसकी चूंकि इस अधिकारमें उस वेदनाके भावभूत कर्मभावकी प्ररूपणा की गई है, अत एव इसका ‘वेदनाभावविधान' यह सार्थक नाम है ।
पदमीमांसा सामित्तमप्पाबहुए त्ति ॥ २॥ वे तीन अनुयोगद्वार ये हैं- पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व ॥ २ ॥
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