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४९८ ] छक्खंडागमे बंध-सामित्तविचओ
[ ३, २२३ ...... तीर्थंकर प्रकृति तक शेष प्रकृतियोंके बन्धाबन्धकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेषता यह है कि उनकी प्ररूपणामें 'प्रमत्तसंयतसे लेकर' ऐसा कहना चाहिये ॥ २२२ ॥ ..
इसका कारण यह है कि प्रकृत मनःपर्ययज्ञान प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे नीचे सम्भव नहीं है।
केवलणाणीसु सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ २२३ ॥ केवलज्ञानियोंमें सातावेदनीयका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २२३ ॥
सजोगिकेवली बंधा । सजोगिकेवलिअद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिजदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २२४ ॥
__ सयोगकेवली बन्धक हैं। सयोगकेवलीकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २२४ ॥
संजमाणुवादेण संजदेसु मणपज्जवणाणिभंगो ॥ २२५॥ संयममार्गणानुसार संयत जीवोंमें प्रकृत प्ररूपणा मनःपर्ययज्ञानियोंके समान है ॥२२५॥ णवरि विसेसो, सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ २२६ ॥
विशेषता इतनी है कि सातावेदनीयका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ., पमत्तसंजदप्पहुडि जाव सजोगिकेवली बंधा । सजोगिकेवलिअद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २२७ ॥
प्रमत्तसंयतसे लेकर सयोगिकेवली तक बन्धक हैं । सयोगकेवलीकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २२७ ॥
सामाइय-छेदोवट्ठावणसुद्धि-संजदेसु पंचणाणावरणीय-[चउदंसणावरणीय]-सादावेदणीय-लोभसंजलण-जसकित्ति-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २२८ ॥
____सामायिक और छेदोपस्थापना-शुद्धिसंयतोंमें पांच ज्ञानावरणीय [चार दर्शनावरणीय,] सातावेदनीय, संज्वलनलोभ, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय; इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक हैं ? ॥ २२८॥
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियट्टिउवसमा खवा बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥
प्रमत्तसंयतसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ २२९ ॥
सेसं मणपज्जवणाणिभंगो ॥ २३० ॥ . शेष प्रकृतियोंकी प्ररूपणा मनःपर्ययज्ञानियोंके समान है ॥ २३० ॥
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