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४, १, ३२ ] कदिअणियोगद्दारे घोरगुणरिद्धिपरूवणा
[ ५१९ अन्तर्गत देशोंमें खुले आकाशके नीचे अथवा वृक्षमूलमें ध्यान ग्रहण करना; इस प्रकारसे जो भयानक बाह्य तपोंका आचरण करते हुए दुष्कर अभ्यन्तर तपोंका भी अनुष्ठान किया करते हैं वे घोरतपऋद्धिके धारक होते हैं । इन घोरतप ऋषिश्वरोंको नमस्कार हो, यह सूत्रका अभिप्राय है।
णमो घोरपरकमाणं ॥ २७॥ घोरपराक्रम ऋद्धिधारक जिनोंको नमस्कार हो ॥ २७ ॥
तीनों लोगोंका उपसंहार करने, पृथिवीतलको निगलने; समस्त समुद्रके जलको सुखाने तथा जल, अग्नि, एवं शिला-पर्वतादिके बरसानेकी शक्तिका नाम घोरपराक्रम है। उस घोरपराक्रम ऋद्धिके धारक जिनोंको नमस्कार हो, यह सूत्रका अभिप्राय है ।
णमो घोरगुणाणं ॥ २८ ॥ घोरगुण जिनोंको नमस्कार हो ॥ २८ ॥ णमो घोरगुणबंमचारीणं ॥ २९ ॥ अघोरगुणब्रम्हचारी जिनोंको नमस्कार हो ॥ २९ ॥
पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति स्वरूप चारित्रका नाम ब्रम्ह है । अघोरका अर्थ शान्त होता है । इस प्रकारसे जो महर्षि शान्त गुणोंसे संयुक्त उस ब्रम्हका आचरण करते हैं वे अघोर ब्रम्हचारी कहलाते हैं । अभिप्राय यह है कि जो साधु तपके प्रभावसे राष्ट्र विप्लव, मारि, दुर्भिक्ष और वध-बन्धनादिके रोकनेमें समर्थ होते हैं उन्हें अघोरब्रम्हचारी जानना चाहिये। यहां सन्धिके कारण सूत्रमें अकारका लोप हो गया है । उन अघोर ब्रम्हचारी जिनोंको नमस्कार हो।
णमो आमोसहिपत्ताणं ॥ ३० ॥ आम\षधिप्राप्त ऋषियोंको नमस्कार हो ॥ ३० ॥
जिनका आमर्ष अर्थात् स्पर्श औषधपनेको प्राप्त है वे आमाँषधिऋद्धिसे संयुक्त होते हैं। अभिप्राय यह है कि तपके सामर्थ्यसे जिन महर्षियोंका स्पर्श सब प्रकारकी औषधिके स्वरूपको प्राप्त कर चुका है वे आमदैषधिप्राप्त कहलाते हैं । उनको नमस्कार हो ।
णमो खेलोसहिपत्ताणं ॥ ३१ ॥ खेलौषधिप्राप्त ऋषियोंको नमस्कार हो ॥ ३१ ॥
खेल शब्दसे श्लेष्म, लार, नासिकामल और विघुष आदिका ग्रहण होता है । जिनका यह खेल औषधित्वको प्राप्त हो गया है वे खेलौषधिप्राप्त ऋषि हैं । उनको नमस्कार हो ।
णमो जल्लोसहिपत्ताणं ॥ ३२ ॥ जल्लौषधिप्राप्त जिनोंको नमस्कार हो ॥ ३२ ॥
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