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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[५३९ ४. वेयणदव्वविहाणं वेयणादव्वविहाणे त्ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंतिपदमीमांसा सामित्तमप्पाबहुए त्ति ।। १॥
अब वेदनाद्रव्यविधानका प्रकरण है। उसमें पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व, ये तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं ॥ १ ॥
प्रकृत वेदनाद्रव्यविधान अनुयोगद्वारमें वेदनारूप जो द्रव्य है उसके विधानस्वरूप उत्कृष्ट. अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य आदि भेदोंकी प्ररूपणा की गई है। उसमें पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व ये तीन अनुयोगद्वार जाननेके योग्य हैं। इनमेंसे पदमीमांसा अनुयोगद्वारमें उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट आदि पदोंकी मीमांसा (विचार) की गई है । स्वामित्व अनुयोगद्वारमें उक्त उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट आदि पदोंके योग्य जीवोंकी प्ररूपणा की गई है । और अल्पबहुत्व अनुयोगद्वारमें उन्हींकी हीनाधिकता बतलाई गई है।
पदमीमांसाए णाणावरणीयवेदना दव्वदो किमुक्कस्सा किमणुक्कस्सा किं जहण्णा किमजहण्णा ? ॥२॥
पदमीमांसा अधिकारप्राप्त है । ज्ञानावरणीयवेदना द्रव्यसे क्या उत्कृष्ट है, क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है और क्या अजघन्य है ? ॥ २ ॥
___यह पृच्छासूत्र है। तदनुसार इसमें यह पूछा गया है कि उक्त ज्ञानावरणीयवेदना द्रव्यकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट है, क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है, और क्या अजघन्य है। प्रकृत सूत्रके देशामर्शक होनेसे यहां सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, ओज, युग्म, ओम, विशिष्ट और नोमनोविशिष्टः इन नौ पद विषयक अन्य नौ पृच्छाओंको भी ग्रहण करना चाहिये ।
उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा जहण्णा वा अजहण्णा वा ॥३॥
उक्त ज्ञानावरणीयवेदना द्रव्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट भी है, अनुत्कृष्ट भी है, जघन्य भी है, और अजघन्य भी है ॥३॥
उपर्युक्त प्रश्नोंके उत्तर स्वरूप यहां यह कहा गया है कि वह ज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् उत्कृष्ट है, क्योंकि, भवस्थितिके अन्तिम समयमें वर्तमान गुणितकर्माशिक सप्तम पृथिवीके नारकीके उसका उत्कृष्ट द्रव्य पाया जाता है । कथंचित् वह अनुत्कृष्ट है, क्यों कि, कर्मस्थितिके अन्तिम समयवर्ती उक्त गुणितकांशिक नारकीको छोड़कर अन्यत्र सर्वत्र उसका अनुत्कृष्ट द्रव्य पाया जाता है । कथंचित वह जघन्य है, क्यों कि, क्षपितकांशिक जीवके क्षीणकषाय गुणस्थानके अन्तिम समयमें उसका जघन्य द्रव्य पाया जाता है । कथंचित् वह अजघन्य भी है, क्योंकि, उक्त क्षपितकौशिक जीवको छोड़कर अन्यत्र उसका अजघन्य द्रव्य पाया जाता है ।
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