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वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे अणियोगद्दारणिदेसो
[४, २, ६, ८
भावकाल आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। उनमें जो जीव कालपाभूतका जानकार होता हुआ वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे सहित है उसका नाम आगमभाव काल है । औदयिक आदि पांच भावों स्वरूप कालको नोआगमभावकाल समझना चाहिये । इन सब काल भेदोंमें यहां प्रमाण काल प्रकृत है। इस अनुयोगद्वारमें चूंकि वेदनासम्बन्धी कालका व्याख्यान किया गया है, अत एव इसका ‘काल विधान' यह सार्थक नाम जानना चाहिये ।
पदमीमांसा सामित्तमप्पाबहुए त्ति ॥२॥ वे ज्ञातव्य तीन अनुयोगद्वार ये हैं- पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व अनुयोगद्वार हैं ।
पदमीमांसाए णाणावरणीयवेयणा कालदो किमुक्कस्सा किमणुक्कस्सा किं जहण्णा किमजहण्णा ? ॥३॥
पदमीमांसा अधिकारके आश्रयसे ज्ञानावरणीय कर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा क्या उत्कृष्ट है, क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है और क्या अजघन्य है ? ॥ ३ ॥
उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा जहण्णा वा अजहण्णा वा ॥४॥
उक्त ज्ञानावरणीय वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट भी है, अनुत्कृष्ट भी है, जघन्य भी है और अजघन्य भी है ॥ ४ ॥
एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥५॥ इसी प्रकार शेष सातों ही कर्मोके उत्कृष्ट आदि पदोंकी प्ररूपणा करना चाहिये ॥५॥ सामित्तं दुविहं जहण्णपदे उक्कस्सपदे ॥६॥ स्वामित्व दो प्रकार है- जघन्य पदविषयक और उत्कृष्ट पदविषयक ॥ ६ ॥ सामिनेण उक्कस्सपदे णाणावरणीयवेयणा कालदो उक्कस्सिया कस्स ? ॥७॥
स्वामित्वके आश्रयसे उत्कृष्ट पदविषयक ज्ञानावरणीयवेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट किसके होती है ? ॥ ७ ॥
___ अण्णदरस्स पंचिंदियस्स सण्णिस्स मिच्छाइद्विस्स सव्वाहिपज्जत्तीहि पज्जत्तयदस्स कम्मभूमियस्स अकम्मभूमियस्स वा कम्मभूमिपडिभागस्स वा संखेज्जवासाउअस्स वा असंखेज्जवासाउअस्स वा देवस्स वा मणुस्सस्स वा तिरिक्खस्स वा णेरइयस्स वा इस्थिवेदस्स वा पुरिसवेदस्स वा णउंसयवेदस्स वा जलचरस्स वा थलचरस्स वा खगचरस्स वा सागारजागार-सुदोवजोगजुत्तस्स उक्कस्सियाए द्विदीए उक्कस्सहिदिसंकिलेसे वट्टमाणस्स, अधवा ईसिमज्झिमपरिणामस्स तस्स णाणावरणीयवेयणा कालदो उक्कस्सा ॥८॥
अन्यतर पंचेन्द्रिय जीवके-- जो संज्ञी है, मिथ्यादृष्टि है, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हैं, कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज अथवा कर्मभूमिप्रतिभागोत्पन्न है, संख्यातवर्षायुष्क अथवा असंख्यात
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