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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ६, १०६
पंचिंदियाणं सण्णीणं सम्मादिट्ठीणं वा मिच्छादिट्ठीणं वा पज्जत्तयाणमाउअस्तपुव्त्रकोडितिभागमाबाधं मोत्तूण जं पढमसमए पदेसग्गं णिमित्तं तं बहुगं, जं विदियसमए पदेसगं णिसितं तं विसेसहीणं, जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं; एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण तेतीस सागरोवमाणि ति ।। १०४ ॥
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पंचेन्द्रिय, संज्ञी एवं सम्यग्दृष्टि अथवा मिध्यादृष्टि पर्याप्तक जीवोंके आयु कर्मकी एक पूर्वकोटिके तृतीय भाग प्रमाण आबाधाको छोड़कर प्रथम समयमें जो प्रदेशपिण्ड निषिक्त है वह बहुत है, द्वितीय समय में जो प्रदेशपिण्ड निषिक्त है वह उससे विशेष हीन है, तृतीय समय में जो प्रदेशपिण्ड निषिक्त है वह विशेष हीन है; इस प्रकार उत्कर्षसे तेतीस सागरोपम तक वह विशेष हीन विशेष हीन होता गया है ॥ १०४ ॥
चूंकि पूर्वकोटित्रिभागके प्रथम समय में वर्तमान संयत सम्यग्दृष्टि जीवोंके देवायुका तेतीस सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तथा उक्त त्रिभागके प्रथम समय में वर्तमान किन्हीं मिथ्यादृष्टि जीवोंके नारकायुका उतना मात्र उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सम्भव है, अत एवं इस अपेक्षासे सूत्रमें ' सम्यग्दृष्टि' और 'मिथ्यादृष्टि' पदोंको ग्रहण किया गया है ।
पंचिंदियाणं सण्णीण मिच्छाइट्ठीणं पज्जत्तयाणं णामा-गोदाणं बेवाससहस्साणि आबाधं मोत्तूण जं पढमसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं बहुगं, जं बिदियसमए पदेसग्गं णिमित्तं तं विसेसहीणं, जं तदिय समए पदेसग्गं णिसितं तं विसेसहीणं; एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण वीसं सागरोवमकोडा कोडियो त्ति ।। १०५ ।।
पंचेन्द्रिय, संज्ञी व मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक जीवोंके नाम और गोत्र कर्मोंकी दो हजार वर्ष प्रमाण आबाधाको छोड़कर जो प्रदेशपिण्ड प्रथम समय में निषिक्त है वह बहुत है, जो प्रदेशपिण्ड द्वितीय समय में निषिक्त है वह उससे विशेष हीन है, जो प्रदेशपिण्ड तृतीय समय में निषिक्त है वह उससे विशेष हीन है; इस प्रकार उत्कर्षसे बीस कोड़ाकोड़ि सागरोपम तक विशेष हीन विशेष न होता गया है ॥ १०५ ॥
पंचिंदियाणं सण्णीण मिच्छाइट्ठीणमपज्जत्तयाणं सत्तण्णं कम्माणमाउववज्जाणमंतोमुहुत्तमाबाधं मोत्तूण जं पढमसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं बहुगं, जं बिदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं, जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं; एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेग अंतोकोडाकोडियो त्ति ।। १०६ ।।
पंचेन्द्रिय, संज्ञी व मिथ्यादृष्टि अपर्याप्तक जीवोंके आयुके विना शेष सात कर्मों की अन्तर्मुहूर्त मात्र आबाधाको छोड़कर जो प्रदेशपिण्ड प्रथम समयमें निषिक्त है वह बहुत है, जो प्रदेशपिण्ड द्वितीय समय में निषिक्त है वह विशेष हीन है, प्रदेशपिण्ड तृतीय समय में निषिक्त है वह विशेष हीन है; इस प्रकार उत्कर्ष से अन्तःकोड़ाकोडि सागरोपम तक विशेष हीन होता गया है |
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