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४, २, ६, १९९] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधज्झवसाणपरूवणा [६०३
इस प्रकार शतपृथक्त्व सागरोपम प्रमाण स्थिति तक जीवोंका प्रमाण विशेष अधिक विशेष अधिक होता गया है ॥ १९० ॥
तेण परं विसेसहीणा विसेसहीणा जाव सादस्स असादस्स उक्कस्सिया हिदि ति ॥ ___ इसके आगे साता व असाता वेदनीयकी उत्कृष्ट स्थिति तक वे विशेष हीन विशेष हीन होते गये हैं ॥ १९१ ॥
परंपरोवणिधाए सादस्स चउट्ठाणबंधा तिट्ठाणबंधा जीवा असादस्स बिट्ठाणबंधा तिहाणबंधा णाणावरणीयस्स जहणियाए हिदीए जीवहिंतो तदो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं गंतूण दुगुणवड्ढिदा ॥ १९२॥
परंपरोपनिधाकी अपेक्षा साताके चतुःस्थानबन्धक व त्रिस्थानबन्धक जीव (तथा असाताके द्विस्थानबन्धक व त्रिस्थानबन्धक जीव ) ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंकी अपेक्षा उनसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग जाकर दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हुए है ॥ १९२ ॥
एवं दुगुणवड्ढिदा दुगुणवड्ढिदा जाव जवमझं ॥ १९३ ॥ इस प्रकार यवमध्य तक वे दुगुणी दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ १९३ ॥ तेण परं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं गंतूण दुगुणहीणा ॥१९४ ॥ इसके आगे पल्योपमके असंख्यातवें भाग जाकर वे दुगुणी हानिको प्राप्त हुए हैं ॥१९४॥ एवं दुगुणहीणा दुगुणहीणा जाव सागरोवमसदपुधत्तं ॥ १९५॥
इस प्रकार शतपृथक्त्व सागरोपम प्रमाण स्थिति तक वे दुगुणी दुगुणी हानिको प्राप्त हुए हैं ॥ १९५॥
सादस्स बिट्ठाणबंधा जीवा-असादस्स चउट्ठाणबंधा जीवा णाणावरणीयस्स जहणियाए द्विदिए जीवेहितो तदो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं गंतूण दुगुणवड्ढिदा ॥
सातावेदनीयके द्विस्थानबन्धक जीव व असातवेदनीयके चतुःस्थानबन्धक जीव ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंकी अपेक्षा उससे पल्योपमके असंख्यातवें भाग जाकर दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥ १९६ ॥
एवं दुगुणवड्ढिदा दुगुणवड्ढिदा जाव सागरोवमसदपुधत्तं ॥ १९७॥ इस प्रकार शतपृथक्त्व सागरोपमों तक वे दुगुणी दुगुणी वृद्धिको प्राप्त हुए हैं ॥१९७॥ तेण परं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं गंतूण दुगुणहीणा ॥ १९८॥ इसके आगे पल्योपमका असंख्यातवें भाग जाकर वे दुगुणी हानिको प्राप्त हुए हैं ॥ एवं दुगुणहीणा दुगुणहीणा जाव सादस्स असादस्स उक्कस्सिया हिदि त्ति ॥१९९॥ इस प्रकार साता व असाता वेदनीयकी उत्कृष्ट स्थिति तक वे दुगुणे दुगुणे हीन हुए हैं।
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