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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ६, १८०
असातावेदनीयके त्रिस्थानबन्धक जीव ज्ञानावरणीयकी अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थितिको
बांधते है ॥ १७९ ॥
असादस्स चउट्ठाणबंधा जीवा असादस्त चेव उक्कस्सियं द्विदिं बंधंति ॥ १८० ॥ असातावेदनीयके चतुः स्थानबन्धक जीव असातावेदनीयकी ही उत्कृष्ट स्थितिको बांधते हैं | सिंदुविहा से डिपरूवणा अणंतरोवणिधा परंपरोवणिधा ॥ १८१ ॥
उनकी श्रेणिप्ररूपणा दो प्रकारकी है- अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा ॥ १८९ ॥ अणंतरोवणिधाए सादस्स चउट्ठाणबंधा तिट्ठाणबंधा जीवा असादस्स विद्वाणबंधा तिट्ठाणबंधा जीवा णाणावरणीयस्स जहण्णियाए द्विदीए जीवा थोवा ॥ १८२ ॥
अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा साता वेदनीयके चतुः स्थानबन्धक व त्रिस्थानबन्धक जीव तथा असातावेदनीयके द्विस्थानबन्धक त्रिस्थानबन्धक जीव ये ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिके बन्धक स्वरूपसे स्तोक हैं ॥ १८२ ॥
बिदिया ट्ठिदिए जीवा विसेसाहिया ।। १८३ ।।
उनसे द्वितीय स्थितिके बन्धक जीव विशेष अधिक है ॥ १८३ ॥ तदियाए द्विदीए जीना विसेसाहिया ।। १८४ ॥
उनसे तृतीय स्थिति बन्धक जीव विशेष अधिक हैं ॥ १८४ ॥
एवं विसेसाहिया विसेसाहिया जाव सागरोवमसदपुधत्तं ॥ १८५ ॥
इस प्रकार शतपृथक्त्व सागरोपमों तक वे विशेष अधिक विशेष अधिक हैं ॥ १८५ ॥ तेण परं विसेसहीणा विसेसहीणा जाव सागरोवमसदपुधत्तं ।। १८६ ।।
उसके आगे वे शतपृथक्त्व सागरोपमों तक विशेष हीन विशेष हीन हैं ॥ १८६ ॥ सादस्स बिट्ठाणबंधा जीवा असादस्स चउट्ठाणबंधा जीवा णाणावरणीयस्स जहणियाए दिए जीवा थोवा ।। १८७ ॥
साताके द्विस्थानबन्धक जीव और असाताके चतुःस्थानबन्धक जीवोंमें ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिके बन्धक स्तोक हैं ॥ १८७ ॥
बिदियाe हिदिए जीवा विसेसाहिया ।। १८८ ॥
उनसे उसकी द्वितीय स्थितिके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं ।॥ १८८ ॥
तदियाए डिदिए जीवा विसेसाहिया ।। १८९॥
उनसे तृतीय स्थितिके बन्धक जीव विशेष अधिक है ॥ १८९ ॥ एवं विसेसाहिया विसेसाहिया जाव सागरोवमसदपुधत्तं ॥ १९० ॥
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