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५९४] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ४, १०९ पंचिंदियाणमसण्णीणं चउरिंदियाणं तीइंदियाणं बीइंदियाणं बादरएइंदियपज्जत्तयाणमाउअपुव्वकोडित्तिभागं बेमासं सोलसरादिंदियाणि सादिरेयाणि चत्तारिवासाणि सत्तवाससहस्साणि सादिरेयाणि आबाहं मोत्तूण जं पढमसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं बहुगं, जं विदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं, जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो पुव्वकोडि त्ति ॥
असंज्ञी पंचेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके आयु कर्मकी यथाक्रमसे पूर्वकोटिके तृतीय भाग, दो मास, साधिक सोलह दिवस, चार वर्ष, और साधिक सात हजार वर्ष प्रमाण आबाधाको छोड़कर जो प्रदेशपिण्ड प्रथम समयमें निषिक्त है वह बहुत है, जो प्रदेशपिण्ड द्वितीय समयमें निषिक्त है वह विशेष हीन है और जो प्रदेशपिण्ड तृतीय समयमें निषिक्त है वह उससे विशेष हीन है; इस प्रकार उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग व पूर्वकोटि तक वह विशेष हीन विशेष हीन होता गया है ॥ १०९ ॥
भुज्यमान उत्कृष्ट आयु असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तोंके पूर्वकोटि, चतुरिन्द्रिय पर्याप्तोंके छह मास, त्रीन्द्रिय पर्याप्तोंके उनचास-रात-दिन, द्वीन्द्रिय पर्याप्तोंके बारह वर्ष और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तोंके बाईस हजार वर्ष प्रमाण सम्भव है। तदनुसार क्रमसे उनके आयुकी उत्कृष्ट आबाधा पूर्वकोटिके तृतीय भाग, दो मास, साधिक सोलह रात-दिन, चार वर्ष और साधिक सात हजार वर्ष मात्र इस आबाधाको छोड़कर उनके बांधे गये आयु कर्मकी निषेक रचना होती है, यहां यह अभिप्राय समझना चाहिये ।
__पंचिंदियाणमसण्णीणं चउरिंदियाणं तीइंदियाणं बीइंदियाणं बादरेइंदियअपज्जत्तयाणं सुहुमेइंदियपज्जत्त-अपज्जत्तयाणं सत्तण्हं कम्माणमाउववज्जाणमंतोमुहत्तयाबाधं मोत्तूण जं पढमसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं बहुगं जं विदियसमए पदेसग्गं णिमित्तं तं विसेसहीणं जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण [सागरोवमसहस्सस्स] सागरोवमसदस्स सागरोवमपण्णासाए सागरोवमपणुवीसाए सागरोवमस्स तिण्णि-सत्तभागा सत्त-सत्तभागा बे-सत्तभागा पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागेण उणया पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण उणया त्ति ॥ ११० ॥
असंज्ञी पंचेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक तथा सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक जीवोंके आयुकर्मसे रहित शेष सात कोंकी अन्तर्मुहूर्त मात्र आबाधाको छोड़कर प्रथम समयमें जो प्रदेशपिण्ड निषिक्त है वह बहुत है, द्वितीय समयमें जो प्रदेशपिण्ड निषिक्त है वह उससे विशेष हीन है, तृतीय समयमें जो प्रदेशपिण्ड निषिक्त है वह उससे विशेष हीन है, इस प्रकार उत्कर्षसे हजार सागरोपम, सौ सागरोपम, पचास सागरोपम, पच्चीस सागरोपम, और एक सागरोपमके सात भागोंमेंसे पल्योपमके संख्यातवें भागसे हीन और पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन तीन, सात और दो भागों तक विशेष हीन विशेष हीन चला गया है ।
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