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४, २, ६, ९ ]
छक्खंडागमे वेयणाखंड
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वर्षायुष्क है; देव, मनुष्य, तिर्यंच अथवा नारकी है; स्त्रीवेद, पुरुषवेद अथवा नपुसंकवेदमेंसे किसी भी वेदसे संयुक्त है; जलचर, थलचर अथवा नभचर है; साकार उपयोगवाला है, जागृत है, श्रुतोपयोगसे युक्त है, उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध योग्य उत्कृष्ट स्थितिसंक्लेशमें वर्तमान है, अथवा कुछ मध्यम संक्लेश परिणामसे युक्त है; उसके ज्ञानावरणीय कर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है ॥ ८ ॥ सूत्रमें जो 'अन्यतर' शब्दको ग्रहण किया है उससे अवगाहना आदिकी विशेषताका प्रतिषेध समझना चाहिये | मिथ्यादृष्टि जीवोंके अतिरिक्त चूंकि उपरिम सासादनादि गुणस्थानत्र जीव ज्ञानावरण की उत्कृष्ट स्थितिको नहीं बांधते हैं, अतएव मिथ्यादृष्टि पदके द्वारा उनका प्रतिषेध कर दिया गया है । मिथ्यादृष्टियों में भी उसकी उत्कृष्ट स्थितिको सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त अवस्थाको प्राप्त हुए जीव ही बांधते हैं, पर्याप्तियोंसे अपर्याप्त जीव उसे नहीं बांधते हैं; यह विशेषता प्रगट करने के लिये यहां 'सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त' ऐसा कहा गया है । पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं - कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज, उनमें पन्द्रह कर्मभूमियोंमें उत्पन्न हुए संज्ञी पर्याप्तक जीव ही उसकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधते हैं, भोगभूमियोंमें उत्पन्न हुए ( अकर्म भूमिज ) उसकी उत्कृष्ट स्थितिको नहीं बांधते है; यह सूचित करनेके लिये यहां कर्मभूमिज पदको ग्रहण किया गया है । उक्त सूत्रमें प्रयुक्त 'अकर्मभूमिज ' शब्द से देव - नारकियोंको तथा 'कर्मभूमिप्रतिभाग' से स्वयम्प्रभ पर्वत बाह्य भागमें उत्पन्न जीवोंको ग्रहण करना चाहिये । दर्शनोपयोगवाले जीव चूंकि ज्ञानावरण की उत्कृष्ट स्थितिको नहीं बांधते हैं, अतः सूत्र में ' साकार उपयोगयुक्त' ऐसा कहा गया है । इसी प्रकार चूंकि सुप्त अवस्थामें उसकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध नहीं होता है, अतः 'जागार' पदके द्वारा जागृत अवस्थाका निर्देश किया गया है। 'श्रुतोपयोगयुक्त' पदसे मतिज्ञानका निषेध समझना चाहिये । इस प्रकार इन विशेषताओंवाला जीव ही चूंकि उक्त ज्ञानावरण कर्मकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है, अतः कालकी अपेक्षा ज्ञानावरणकी उत्कृष्ट वेदना उसीके होती है, यह इस सूत्रका अभिप्राय समझना चाहिये ।
तव्वदिरित्तमणुक्कस्सा ॥ ९ ॥
उससे भिन्न उक्त ज्ञानावरणकी काकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट वेदना होती है ॥ ९ ॥ ज्ञानावरणका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीस कोड़ाकोडि सागरोपम प्रमाण होता है । उससे एक दो समय कम, एवं तीन समय कम आदि विविध स्थिति भेदोंको अनुत्कृष्ट समझना चाहिये । एवं छष्णं कम्माणं ॥ १० ॥
इसी प्रकार शेष छह कर्मोंसम्बन्धी काल वेदनाके भी उत्कृष्ट स्वामित्वकी प्ररूपणा समझना चाहिये ॥ १० ॥
सामित्तेण उक्कस्सपदे आउअवेयणा कालदो उक्कस्सिया कस्स ? ॥। ११ ॥ स्वामित्वकी अपेक्षा उत्कृष्ट पदविषयक आयु कर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट किसके होती है ? ॥ ११ ॥
समय कम,
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